हम ही हुए बेआबरू, हम ही गुनाहगार। बाकी तो बेक़सूर थे, हम हुए तार - तार।। जिससे किसी का था नहीं कोई भी सरोकार। सबने किया है जिक्र उसी का अनेक बार।। आये थे भरी भीड़ में बेहद शरीफ़ लोग। लेकर जुबाँ पे मरहम, दिल मे लिए दुरोग।। दिल मे दबी हुई ललक जो माँगती है भोग। लगता है जैसे बन चुकी है लाइलाज रोग।। कुदरत ने ज़रा क्या लिया छोटा सा इम्तिहान। हर शख्श दे रहा है बड़े गौर से बयान।। ख़ुद के किसी प्रभार का न ज्ञान है न भान। देते है बड़े शौक से दायित्व पर बयान।। एक बार ही नही ये हुआ है अनेक बार। हम ही हुए बेआबरू, हम ही गुनाहगार।। जाता नही है दिल का निरपराध यह विचार। हमने भी लिया ठान चलो कर लें आर -पार।। ............कौशल तिवारी . ©Kaushal Kumar #बे आबरू