आजकल मुझको न जाने क्या हुआ है मन मेरा खुद में कहीं खोया हुआ है। शाम -ए -ग़म है ज़िन्दगी खोई हुई है है उदासी जबसे दिल तनहा हुआ है। दीन ओ दुनिया की खबर ना खुद की है जाने मन किस सोच में उलझा हुआ है। अपनेपन से कोई मिलता ही नहीं है ऐसा लगता है शहर बदला हुआ है। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #आजकल