नींद (Full Poem in caption) //नींद// कहीं टूटी है, कहीं सिमटी है कुछ सादी है, कुछ खारी है वैसे हल्की है, जैसे भारी है।। यहीं ख़ालिस है, यहीं नक़ली है वही बाक़ी है, वही कामिल है