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क्यों मन तू कभी काशी जाए कभी वृंदावन जाए क्यों न

क्यों मन तू कभी काशी जाए 
कभी वृंदावन जाए 
क्यों न तू सहज़ समाधि लगाए 

 क्यों मन तू कभी गंगा जाए
 कभी जमुना जाए 
 क्यों न तू परम चैतन्य से नहाए 

 क्यों मन कभी तू इड़ा जाए, 
 कभी पिंगला जाए 
 क्यों न तू  सुषुम्ना मे समाए 

 क्यों तु एक विचार से 
अनेक विचारों में जाए 
 क्यों न तू निर्विचारिता चाहे 

 क्यों मन तू आकाश चाहे 
 अंतरिक्ष चाहे 
 क्यों न तू ब्रह्मांड चाहे 

 क्यों तू कभी एक स्थान जाए,
 कभी दूसरा 
 क्यों न तू सदाशिव में समाए 
क्यों न मन तू शून्य हो पाए

©Rakhi Om #sahajyoga
क्यों मन तू कभी काशी जाए 
कभी वृंदावन जाए 
क्यों न तू सहज़ समाधि लगाए 

 क्यों मन तू कभी गंगा जाए
 कभी जमुना जाए 
 क्यों न तू परम चैतन्य से नहाए 

 क्यों मन कभी तू इड़ा जाए, 
 कभी पिंगला जाए 
 क्यों न तू  सुषुम्ना मे समाए 

 क्यों तु एक विचार से 
अनेक विचारों में जाए 
 क्यों न तू निर्विचारिता चाहे 

 क्यों मन तू आकाश चाहे 
 अंतरिक्ष चाहे 
 क्यों न तू ब्रह्मांड चाहे 

 क्यों तू कभी एक स्थान जाए,
 कभी दूसरा 
 क्यों न तू सदाशिव में समाए 
क्यों न मन तू शून्य हो पाए

©Rakhi Om #sahajyoga
rakhigupta3359

Rakhi Om

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