क्यों मन तू कभी काशी जाए कभी वृंदावन जाए क्यों न तू सहज़ समाधि लगाए क्यों मन तू कभी गंगा जाए कभी जमुना जाए क्यों न तू परम चैतन्य से नहाए क्यों मन कभी तू इड़ा जाए, कभी पिंगला जाए क्यों न तू सुषुम्ना मे समाए क्यों तु एक विचार से अनेक विचारों में जाए क्यों न तू निर्विचारिता चाहे क्यों मन तू आकाश चाहे अंतरिक्ष चाहे क्यों न तू ब्रह्मांड चाहे क्यों तू कभी एक स्थान जाए, कभी दूसरा क्यों न तू सदाशिव में समाए क्यों न मन तू शून्य हो पाए ©Rakhi Om #sahajyoga