मय की खातिर अपने ईमान न बेच साकी। तेरे अपने ही शहर में कई मयख़ाने अभी हैं बाकी।। # ◆आशीष●द्विवेदी◆ ©Bazirao Ashish मय की खातिर अपने ईमान न बेच साकी। तेरे अपने ही शहर में कई मयख़ाने अभी हैं बाकी।। काव्यगत सौंदर्य☺️ :- शब्दार्थ- मय =शराब ,साकी= शराब पीने का शौकिन(not like बेवड़ा) # ◆आशीष●द्विवेदी◆