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हिन्दी से जन्में यहाँ , सूर और रसखान । हिन्दी

हिन्दी  से  जन्में  यहाँ , सूर  और  रसखान ।
हिन्दी की महिमा सुनो , करते छन्द बखान ।।

हिन्दी का चलता रहा , निज भाषा  से  द्वंद्व ।
जीत नही कोई सका , पढ़कर इनके छन्द ।।

हिन्दी  से  अभिमान है , हिन्दी  से  सम्मान ।
हिन्दी से  ही  देश की , होती  नित पहचान ।।

हिन्दी के हर वर्ण में , मिले अलोकिक ज्ञान ।
वर्ण-वर्ण  कर  दे  हमें , विद्या  में गुणवान ।।

 १४/०९/२०२२    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR हिन्दी  से  जन्में  यहाँ , सूर  और  रसखान ।
हिन्दी की महिमा सुनो , करते छन्द बखान ।।

हिन्दी का चलता रहा , निज भाषा  से  द्वंद्व ।
जीत नही कोई सका , पढ़कर इनके छन्द ।।

हिन्दी  से  अभिमान है , हिन्दी  से  सम्मान ।
हिन्दी से  ही  देश की , होती  नित पहचान ।।
हिन्दी  से  जन्में  यहाँ , सूर  और  रसखान ।
हिन्दी की महिमा सुनो , करते छन्द बखान ।।

हिन्दी का चलता रहा , निज भाषा  से  द्वंद्व ।
जीत नही कोई सका , पढ़कर इनके छन्द ।।

हिन्दी  से  अभिमान है , हिन्दी  से  सम्मान ।
हिन्दी से  ही  देश की , होती  नित पहचान ।।

हिन्दी के हर वर्ण में , मिले अलोकिक ज्ञान ।
वर्ण-वर्ण  कर  दे  हमें , विद्या  में गुणवान ।।

 १४/०९/२०२२    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR हिन्दी  से  जन्में  यहाँ , सूर  और  रसखान ।
हिन्दी की महिमा सुनो , करते छन्द बखान ।।

हिन्दी का चलता रहा , निज भाषा  से  द्वंद्व ।
जीत नही कोई सका , पढ़कर इनके छन्द ।।

हिन्दी  से  अभिमान है , हिन्दी  से  सम्मान ।
हिन्दी से  ही  देश की , होती  नित पहचान ।।