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सुन री कागज़ की कश्ती, मुझे बचपन की गलियों में ले

सुन री कागज़ की कश्ती, मुझे बचपन की गलियों में
ले चल
वो अल्हड़पन,मस्ती,खिलखिलाता था उन गलियों‌ में बचपन
लहरों के संग ले हिलोरें मनवा भागे‌ फिर उस दिशा में हर पल
बागों के झूले और फुहारों में झूमना चाहता जी भर
ये मन।

©हरप्रीत कौर की ज़ुबानी कविता किस्से कहानी
  #कागज़ की कश्ती