Nojoto: Largest Storytelling Platform

ट्रेन के सफर जैसी है जिन्दगी I जहां स्टेशन आया वही

ट्रेन के सफर जैसी है जिन्दगी I
जहां स्टेशन आया वही ठहर गए ॥
बचपन जवानी और बुढ़ापा तीन घड़ी जैसे बीत गए |
अन्तिम संस्कार में मौत के आगोश मे लेट गए ॥
ख्वाईशों का ढेर बाँधकर कफन में हम लिपट गए ।
मुठ्ठी भर राख बनकर रेत से मुठ्ठी से ही फिसल गए ॥

©Shakuntala Sharma
  #alone जीवन तो तीन घड़ी का खेल है ।

#alone जीवन तो तीन घड़ी का खेल है । #शायरी

454 Views