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शाम ढलते परिंदे घर को लौट जाते है बेरोजगार आदमी सड़

शाम ढलते परिंदे घर को लौट जाते है
बेरोजगार आदमी सड़क पर अपना मका बनाते है
उधारी से हर जिस्म डूबा पड़ा है
बच्चों के खातिर कपड़ों की चिंता बढ़ा है
नहीं ले गए कपड़े तो मुस्कान फीकी पड़ जाएगी
बच्चों की वो जिद  बाप पर कम हो जाएगी
सब सोचकर तन और कर्ज में डूब जाता है
दिन रात कमाते कमाते पूरा साल बीत जाता है
तन पर सही से कपड़ा रखना भूल जाते हैं
दिवाली पर कब मिठाई लेंगे सपने रह जाते हैं
बरसात में अक्सर घर की छत टूट जाते हैं
दूसरों का घर बनाने वाले अपना ही भूल जाते हैं ।।

डॉ राहुल चौधरी

©Dr Rahul chaudhary
  #in #hi #Poetry #poem #Nojoto #Hindi #Ka #kavita #Instagram #India
शाम ढलते परिंदे घर को लौट जाते है
बेरोजगार आदमी सड़क पर अपना मका बनाते है
उधारी से हर जिस्म डूबा पड़ा है
बच्चों के खातिर कपड़ों की चिंता बढ़ा है
नहीं ले गए कपड़े तो मुस्कान फीकी पड़ जाएगी
बच्चों की वो जिद  बाप पर कम हो जाएगी
सब सोचकर तन और कर्ज में डूब जाता है
दिन रात कमाते कमाते पूरा साल बीत जाता है
तन पर सही से कपड़ा रखना भूल जाते हैं
दिवाली पर कब मिठाई लेंगे सपने रह जाते हैं
बरसात में अक्सर घर की छत टूट जाते हैं
दूसरों का घर बनाने वाले अपना ही भूल जाते हैं ।।

डॉ राहुल चौधरी

©Dr Rahul chaudhary
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