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#कन्यादान #कन्यादान भाग5 रवि मेरे बेटे के जाने क

#कन्यादान #कन्यादान
 भाग5

रवि मेरे बेटे के जाने के बाद अपना दोस्ती का धर्म निभाने के लिये अक्सर घर आता जाता था। हमारी हर तरह से मदद करता था,संजना को सदमे से निकलने में उसका योगदान में भूल नहीं सकती। शुरू शुरू में वो संजना से भाभी के रिश्ते से मिलता था,पर उसे धीरे धीरे संजना से लगाव हो गया। मैं रवि को अपने बेटे की तरह खूब समझती थी,सो मैं भाँप गयी कि अब रवि संजना को चाहने लगा है। एक दिन मैंने पूछ ही लिया- शादी करेगा क्या अपने दोस्त की विधवा से?
वो फूट फूट कर रोने लगा,मानो दिल की बात आंखों ने कह दी हो। माँ-पापा से पूछ कर आपको बताता हूँ कहकर वो चला गया। वो लोग संजना के स्वभाव को भली भाँति जानते थे,मैं भी स्वतंत्र विचारों वाली हूँ ये भी उन्हें पता था। वो लोग बच्चों को भी अपनाने को तैयार थे।कल वो लोग घर आ रहे थे,मैंने अपनी बेटी को भी बुला लिया था।वो अपनी भाभी के लिये लिये गये मेरे फैसले से खुश थी। रवि की माँ मेरी सहेली थी ,इसलिये किसी भी तरह की औपचारिकता की ज़रूरत नहीं थी।
#कन्यादान #कन्यादान
 भाग5

रवि मेरे बेटे के जाने के बाद अपना दोस्ती का धर्म निभाने के लिये अक्सर घर आता जाता था। हमारी हर तरह से मदद करता था,संजना को सदमे से निकलने में उसका योगदान में भूल नहीं सकती। शुरू शुरू में वो संजना से भाभी के रिश्ते से मिलता था,पर उसे धीरे धीरे संजना से लगाव हो गया। मैं रवि को अपने बेटे की तरह खूब समझती थी,सो मैं भाँप गयी कि अब रवि संजना को चाहने लगा है। एक दिन मैंने पूछ ही लिया- शादी करेगा क्या अपने दोस्त की विधवा से?
वो फूट फूट कर रोने लगा,मानो दिल की बात आंखों ने कह दी हो। माँ-पापा से पूछ कर आपको बताता हूँ कहकर वो चला गया। वो लोग संजना के स्वभाव को भली भाँति जानते थे,मैं भी स्वतंत्र विचारों वाली हूँ ये भी उन्हें पता था। वो लोग बच्चों को भी अपनाने को तैयार थे।कल वो लोग घर आ रहे थे,मैंने अपनी बेटी को भी बुला लिया था।वो अपनी भाभी के लिये लिये गये मेरे फैसले से खुश थी। रवि की माँ मेरी सहेली थी ,इसलिये किसी भी तरह की औपचारिकता की ज़रूरत नहीं थी।

#कन्यादान भाग5 रवि मेरे बेटे के जाने के बाद अपना दोस्ती का धर्म निभाने के लिये अक्सर घर आता जाता था। हमारी हर तरह से मदद करता था,संजना को सदमे से निकलने में उसका योगदान में भूल नहीं सकती। शुरू शुरू में वो संजना से भाभी के रिश्ते से मिलता था,पर उसे धीरे धीरे संजना से लगाव हो गया। मैं रवि को अपने बेटे की तरह खूब समझती थी,सो मैं भाँप गयी कि अब रवि संजना को चाहने लगा है। एक दिन मैंने पूछ ही लिया- शादी करेगा क्या अपने दोस्त की विधवा से? वो फूट फूट कर रोने लगा,मानो दिल की बात आंखों ने कह दी हो। माँ-पापा से पूछ कर आपको बताता हूँ कहकर वो चला गया। वो लोग संजना के स्वभाव को भली भाँति जानते थे,मैं भी स्वतंत्र विचारों वाली हूँ ये भी उन्हें पता था। वो लोग बच्चों को भी अपनाने को तैयार थे।कल वो लोग घर आ रहे थे,मैंने अपनी बेटी को भी बुला लिया था।वो अपनी भाभी के लिये लिये गये मेरे फैसले से खुश थी। रवि की माँ मेरी सहेली थी ,इसलिये किसी भी तरह की औपचारिकता की ज़रूरत नहीं थी।