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टूटे जो पत्ते पेड़ों से शाख शाख 🍂 मंज़र होता चहु

टूटे जो पत्ते पेड़ों से 
शाख शाख 🍂
मंज़र होता चहुं दिशाओं में 
बोझिल बोझिल 🍂
उड़ते जो सूखे पत्ते करते 
खड़खड़ खड़खड़ 🍂
आबाद मन न जाने फिर क्यों होता 
सहमा सहमा 🍂
पेड़ों से पत्ते गिरते 
जैसे जैसे 🍂
मन का उचाटपन बढ़ता जाता 
वैसे वैसे 🍂
तब नीरस सा लगता सब कुछ 
बेरंग बेरंग 🍂
लाता व्याकुलता के सभी गहरे भाव 
पतझड़ पतझड़ 🍂
फिर से बाहर आने तक का इंतजार करता फिर 
ये मन ये मन🍂

©rajeshwari Thakur
  #Pattiyan #पतझड़