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मैं रोते हुए भी हंसता हूं। मैं रोते हुए भी हंसता ह

मैं रोते हुए भी हंसता हूं।
मैं रोते हुए भी हंसता हूं, मैं हंसता हूं हुए भी रोता हूं।
दर्द हो चाहे जितना गहरा, ना जाहिर मैं करता हूं।
मैं रोते हुए भी...।
आंसू को इजाजत दिया नहीं कि, आंखों में वो भर आए।
बरस बरस कर दर्द को अपनी, सब को वो बतला जाए।
आंखों के आंसू को भी मैं, तन्हाई में समझता हूं। 
मैं रोते हुए...।
जिसकी प्यास रही जीवन में, प्यास कभी वो बुझी नहीं।
चाह रही जीवन में जिसकी, वो भी मुझको मिली नहीं।
गम का साज बना है दिल, मैं दर्द के नगमे गाता हूं।  
मैं रोते हुए...।
जिस मोड़ पे आ के खड़ा हूं मैं,दिखता है अपना कोई नहीं।
राह जिधर को जाती है, मंजिल मेरी उस ओर नहीं।
सब के रहते तन्हाई है, तन्हा मैं वक्त बीतता हूं।
मैं रोते हुए...।
माना के दर्द का मारा हूं, पर सहना मुझे भी आता है।
कोई साथ मेरा दे या न दे, मुझे रह पे चलना आता है।
हद से जब दर्द गुजरता है, मैं नगमों से दिल बहलाता हूं।
मैं रोते हुए भी ....।मैं हंसते हुए भी... ।

©नागेंद्र किशोर सिंह
  # मैं रोते हुए भी हंसता हूं।

# मैं रोते हुए भी हंसता हूं। #कविता

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