खुरचनों के कंकाल पर कपाल रख कर बैठा हूं सुबह सवेरे रौंदे गए अधिकार लेकर बैठा हूं आई है हिस्से में सूखे के पतों की नस मरहम के लिए हाथ में कपास के फोहे लिए बैठा हूं जड़ से आया है दर्द फुटकर बहार और मैं सीने पर गुलाब लिए बैठा हूं रहम कर भी लोग खुदा ना जाने में क्या क्या हिसाब लिए बैठा हूं // खुरचनों के कंकाल पर कपाल रख कर बैठा हूं सुबह सवेरे रौंदे गए अधिकार लेकर बैठा हूं आई है हिस्से में सूखे के पतों की नस