नाक़ामयाबी हाँ मैं नाकामयाब हूँ ! पर झूठा नहीं बस इन्सान हूँ! हाथों क़ी लकीरों को बदलने को बेताब हूँ! लोग बोले मुझे ज़मीन पर शायद मैं आसमान हूँ! हाँ जानता हूँ मैं नाकामयाब हूँ! पर पत्थर नहीं ना ही बेजान हूँ! रात क़ी क़ाली रात क़ी तरह छिपा सुनसान हूँ! कामयाबी क्या हैं हाँ अभी उस से अंजान हूँ! छोड़ो जाने दो बातों को मैं कौन सा ज्ञान हूँ! लोग बोले मुझे ज़मीन पर शायद मैं आसमान हूँ! हाँ जानता हूँ मैं नाकामयाब हूँ! ©Vipul dev chauhan नाक़ामयाबी हाँ मैं नाकामयाब हूँ ! पर झूठा नहीं बस इन्सान हूँ! हाथों क़ी लकीरों को बदलने को बेताब हूँ! लोग बोले मुझे ज़मीन पर शायद मैं आसमान हूँ! हाँ जानता हूँ मैं नाकामयाब हूँ! पर पत्थर नहीं ना ही बेजान हूँ!