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क्यों है असीमित नियोजन तुम्हारे विश्वासों का

क्यों है  असीमित  नियोजन तुम्हारे  विश्वासों  का  ईश्वर मे ही?  
क्यों नहीं कर पाते  तुम  अपनी निष्ठां  और  श्रद्धा का  विनियोजन   मनुष्य मे 
जबकि विकासमान विश्व  क़े जीवंत   प्रवाह  मे मनुष्य  क़े 
अभियान सारगर्भित   है l
और  मनुध्य मे  उत्साहित  होने की  काबलियत  ईश्वर  से कही  अधिक प्रतीत  होती है l क्या तुम जानते  नहीं?  
ये आँधिया   अँधेरे और   अंधड़  मानव  निर्मित  नहीं है l
माना क़ि ईश्वर मे  दिव्यता है  किन्तु  उसकी भव्यता  सिर्फ एक  दृष्टि  है 
जो सदैव दृष्टिकोण मे  रूपांतरित  नहीं  हो सकती 
और न ही वो कभी  अनुभव   बन सकती. है 
क्योंकि उस  तथाकथित  ईश्वर  क़े  चमत्कसर  और  जलवे  भी   
अब  दिखते   कहाँ  हैँ l #नियोजन  विनियोजन 
...............................
क्यों है  असीमित  नियोजन तुम्हारे  विश्वासों  का  ईश्वर मे ही?  
क्यों नहीं कर पाते  तुम  अपनी निष्ठां  और  श्रद्धा का  विनियोजन   मनुष्य मे 
जबकि विकासमान विश्व  क़े जीवंत   प्रवाह  मे मनुष्य  क़े 
अभियान सारगर्भित   है l
और  मनुध्य मे  उत्साहित  होने की  काबलियत  ईश्वर  से कही  अधिक प्रतीत  होती है l क्या तुम जानते  नहीं?  
ये आँधिया   अँधेरे और   अंधड़  मानव  निर्मित  नहीं है l
माना क़ि ईश्वर मे  दिव्यता है  किन्तु  उसकी भव्यता  सिर्फ एक  दृष्टि  है 
जो सदैव दृष्टिकोण मे  रूपांतरित  नहीं  हो सकती 
और न ही वो कभी  अनुभव   बन सकती. है 
क्योंकि उस  तथाकथित  ईश्वर  क़े  चमत्कसर  और  जलवे  भी   
अब  दिखते   कहाँ  हैँ l #नियोजन  विनियोजन 
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#नियोजन विनियोजन ...............................