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तमद्वार का दीपक।। मैं तमद्वार का दीपक,रौशन कुछ हि

तमद्वार का दीपक।।

मैं तमद्वार का दीपक,रौशन कुछ हिस्सा तो कर जाऊंगा।
रवि-रश्मि का तेज लिए,अमर कुछ किस्सा तो कर जाऊंगा।

तू मूक रहा, कर बांधे खड़ा,निजशब्दों में तेरा हुंकार भरूंगा।
कंपित से तेरे अधरों पर,बन शब्द, नेपथ्य से पुकार करूँगा।

धीर है तू हीमवर सा अडिग,शोणित में धार समेटे यमुना गंगा की।
प्रसार तेरा बटवृक्ष सा है,ऊंचाई, अम्बर छूती कंचनजंगा सी।

त्वरित गति, असाध्य बल,भुजाओं में फड़कता, असीमित सागर अनंत।
तू अनजान, हनुमान है,मैं ले लेखनी बाल्मीक, शब्दों को बना दूँ जामवंत।

तू महज़ मनुज का भेष नही,राम सा शील, अल्हड़ कृष्ण सा, दधीचि का अनुयायी है।
एटलस सा है कंधा तेरा,तू इस जग के उत्थान-पतन उदय-अस्त का उत्तरदायी है।

तू इस कवि की धृष्टता,एक बागी, स्वजन का रखवाला है।
मेरी कविता भी जिसपे नाज़ करे,तू मदमस्त, बेखौफ, एक मतवाला है।

©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote तमद्वार का दीपक।।।
तमद्वार का दीपक।।

मैं तमद्वार का दीपक,रौशन कुछ हिस्सा तो कर जाऊंगा।
रवि-रश्मि का तेज लिए,अमर कुछ किस्सा तो कर जाऊंगा।

तू मूक रहा, कर बांधे खड़ा,निजशब्दों में तेरा हुंकार भरूंगा।
कंपित से तेरे अधरों पर,बन शब्द, नेपथ्य से पुकार करूँगा।

धीर है तू हीमवर सा अडिग,शोणित में धार समेटे यमुना गंगा की।
प्रसार तेरा बटवृक्ष सा है,ऊंचाई, अम्बर छूती कंचनजंगा सी।

त्वरित गति, असाध्य बल,भुजाओं में फड़कता, असीमित सागर अनंत।
तू अनजान, हनुमान है,मैं ले लेखनी बाल्मीक, शब्दों को बना दूँ जामवंत।

तू महज़ मनुज का भेष नही,राम सा शील, अल्हड़ कृष्ण सा, दधीचि का अनुयायी है।
एटलस सा है कंधा तेरा,तू इस जग के उत्थान-पतन उदय-अस्त का उत्तरदायी है।

तू इस कवि की धृष्टता,एक बागी, स्वजन का रखवाला है।
मेरी कविता भी जिसपे नाज़ करे,तू मदमस्त, बेखौफ, एक मतवाला है।

©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote तमद्वार का दीपक।।।