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मन में डर पंखों को समेटे अब तो बेटियाँ और परीन्दे

मन में डर पंखों को समेटे 
अब तो बेटियाँ और परीन्दे बैठे हैं 
कैसे निकले अब ये खुले आसमान में 
कहीं बहेलिये कहीं दरिन्दे बैठे हैं

©INDRAJEET KUMAR,
  #पंछी