ज़ीस्त भी बडी अजीब है साहब कभी न'ईम तो कभी आब-ए-चश्म बरसाती है। लेकीन कीसी भी हालात मे जीना सीखाती है। ज़ीस्त=जीवन न'ईम=आनन्द आब-ए-चश्म=आंसु #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #उर्दुकीपाठशाला Collaborating with कोरा काग़ज़