पेज-72 कथाकार ने देखा ये नये मेहमान थे सारिका जी.. ये भी मानक की शादी का इनविटेशन पढ़कर शादी में शामिल होने आये हैं.. पांचो ने उन्हें भी अपने स्नेह बंधन में बांध लिया..! पुष्पा जी ने आगे कहा-आप लोग निश्चिन्त रहें मैं ठीक हूं रे, इतना समर्पित परिवार जहां हो, वहाँ किसकी मजाल जो निग़ाह उठाकर भी देख ले किसी को... दरअसल मेरे भैया बहन इस कड़ीधूप में काम कर रहे हैं तो मैंने सोचा उन्हें तरबूज काटकर खिलाऊं जिससे उन्हें शीतलता मिले... बस इसीलिये सुधा और दिव्या को आवाज लगाई... दिव्या-ऐसे...! पुष्पा जी-अरे पगलू एक्साइटमेंट में भूल ही गई मैं...! चलो चलो अब सबके लिये हम सब मिलकर तरबूज काटते हैं और सबको बांटते हैं.. मनीषा जी-how sweet.. you are..! पुष्पा जी-you all too..! सारिका जी-दी एक छुरी मुझे दीजिये तो जरा.. मै एक को दो बनाते जाती हूं.. मनीषा दी दो को चार करते जायेंगे... आगे कैप्शन में.. 🙏 ©R. K. Soni #रत्नाकर कालोनी पेज-72 दिव्या-और मैं चार के आठ..! राखी जी-और मै क्या बैठी रहूंगी रे दिव्या...! सुधा-अर्रे बाबा आपको हम बैठने कहां देंगे... लो आप आठ के सोलह पीस करते चलो.. पुष्पा जी-फटाफट करो जल्दी... एईई आयशा.. ! सुधा-फिर चिल्लाई.. तू... पुष्पा जी-(बिलकुल धीरे से) ऐ ईईईई.. आ... य... शा...