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जीवन ही बचपन वाला हैं बाकि फिर तो जीवन में उलझनें

जीवन ही बचपन वाला हैं
बाकि फिर तो जीवन में 
उलझनें ही उलझनें हैं
वो खेल भी क्या खेल थें
चिड़िया को उड़ाने के साथ-साथ
न जाने कितने ओर जानवर उड़ जाते थें
वो साँप सीडी लूडो के चक्कर में
कितने छक्के छूट जाते थें
मिट्टी के ढेर में
मिट्टी से घर बनाते थें
साईकिल का पहिया लेकर
गलियों में घूम आते थें
बेहद खूबसूरत दिन थें
क्योंकि वो बचपन वाले दिन थें

©Khüśhßôô Jâiñ
  #poetry #bachpan