पुरानी गाथाये इतिहास बन चुकी और पुराने गीत भी तिथि बाह्य हो चुके क्योंकि उनमे पीड़ा का दंश था और आज के सन्दर्भॉ से मेल मिलाप भी उनमे नही दिख रहा था लेकिन अब तो काफ़ी बदलाव आ चुका है अब नए शब्द नए छंद नए उदगारो का बोलबाला है नए अलंकरण और ताज़गी भरे विशेषण हमारी अभिव्यक्तियों क़ो लिपिबाद्द कर उन् गीतो क़ो प्रगतिवादी कविता के बाजार मे खड़ा कर सकते है ©Parasram Arora प्रगति वादी कविता