साज़िश में शामिल हों अपने फिर किस पर विश्वास करोगे, माया की नगरी में आकर अपनेपन की आस करोगे, स्वार्थ सिद्धि में सारी दुनिया भटक रही सुख चैन गँवाकर, कब तक सीता कष्ट सहेगी राम को तुम वनवास करोगे, अंधकार से मुक्ति दिलाने को सूरज आता है नभ में, कुलदीपक होकर भी क्या अपने घर का उपहास करोगे, दर्द तजुर्बे से हो हासिल अक्सर सही नहीं होता, अनुभव हो तो मन के कोमल भावों से एहसास करोगे, दूर बैठकर इंतज़ार करता बहेलिया चिड़ियों का, लोभ त्याग दो वरना फँसकर दिल को बड़ा उदास करोगे, असर नहीं पड़ने वाला कुछ भैंस के आगे बीन बजाये, नासमझों के बीच में 'गुंजन' यूँ ही तुम बकवास करोगे, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #किस पर विश्वास करोगे#