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हवाओं का तो शौख़ था उसका आशियाँ जलाने का, तक़लिफें

हवाओं का तो शौख़ था उसका आशियाँ जलाने का,
 तक़लिफें फ़क़त इतनी थी,उसे जलाने वाले अपने थे।।

यहाँ हर ख़्वाब जलकर धुँआ हो रहा था,और इस 
मंज़र को देखने के लिए न जाने लोग कितने थे।।

यहाँ किसी के ग़मों से किसी का कोई वास्ता न था,
यहाँ तो हर किसी को तकलीफ़े भी तमाशे ही लगने थे।।

वो मुसाफ़िर जो भटक रहा था मंज़िल-ए-तलाश में, 
और उन रास्तों को उसके सफ़र-ए-दास्ताँ जानने थे।।

मुफ़लिसी सड़को पर रात गुज़ारती थी,और लिखने 
वालों को उसकी ज़िन्दगी के फ़साने लिखने थे।।

कई शाम तक बैठा रहा एक शख़्स सहर-ए-इंताज़र
में,पर उसके उम्मीदों के सूरज को कभी न निकलने थे।।

                                     :-आर्या
                                    08/03/22

©आर्या #मुफ़लिसी#हवा#आशियाँ
हवाओं का तो शौख़ था उसका आशियाँ जलाने का,
 तक़लिफें फ़क़त इतनी थी,उसे जलाने वाले अपने थे।।

यहाँ हर ख़्वाब जलकर धुँआ हो रहा था,और इस 
मंज़र को देखने के लिए न जाने लोग कितने थे।।

यहाँ किसी के ग़मों से किसी का कोई वास्ता न था,
यहाँ तो हर किसी को तकलीफ़े भी तमाशे ही लगने थे।।

वो मुसाफ़िर जो भटक रहा था मंज़िल-ए-तलाश में, 
और उन रास्तों को उसके सफ़र-ए-दास्ताँ जानने थे।।

मुफ़लिसी सड़को पर रात गुज़ारती थी,और लिखने 
वालों को उसकी ज़िन्दगी के फ़साने लिखने थे।।

कई शाम तक बैठा रहा एक शख़्स सहर-ए-इंताज़र
में,पर उसके उम्मीदों के सूरज को कभी न निकलने थे।।

                                     :-आर्या
                                    08/03/22

©आर्या #मुफ़लिसी#हवा#आशियाँ