रकीब न हों तो आशिक़ी का मज़ा क्या है, उसपर दुनिया न मरे तो इश्क का मज़ा क्या है। कतारें लगती थी जब चीनी राशन में मिलती थी, अमिताभ* से पूछ 'चीनी कम' में चासनी का मज़ा क्या है। *कभी न बुझने वाला।