बहुत जज्बे से लड़ा पर मुझे पता था मेरा हसर क्या होगा इसलिए मैने हर किसी को नही बताया सब कुछ क्योकि मुझे पता था मेरा असर खत्म कहाँ होगा मेरे दस्तरस मे नही था कुछ भी अगर होता तो मै भी आज दुसरो की मशावात करता खुद्दार हूँ मै मैने दरियाओं से नही पूछना है उनसे कैसे पार पाना है मै तो वो हुँ जो भीड़ मे खड़ा होकर भी खुद के सिवा दुसरो से बात नही करता जद्दोजहद मे लगा रहता हूँ सारा दिन मेरी कशमकश को कोई समझता नही है मेरे तश्मे हमेशा खुले रहते है मेरी तख्ती पर जज्बातो के अलावा कुछ छपता नही है मेरे मतलो की गहराइयों को समझा करो समझने पर ही मेरे मक्तो का रुतबा बढ़ता है तुम लोग ऐसे ही हो कह देते हो गुलशन तु ये क्या लिखता है सूरज रोज सुबह उगता जरूर है पर दिन चढ़ता नही है... ©GULSHAN KUMAR कशमकश..