अच्छा लगा तुम घर आए अच्छा लगा तुम घर आए खुशी है तुमने मेरे लिए आंसू बहाये सुकून मिला सुन कर उन विचारों को जो तुमने मेरे बारे में सबको बताए कितना प्रेम पाले बैठे थे मुझे कबसे दिल में सम्भाले बैठे थे कितना टूट कर तुमने हमारे किस्से सबको सुनाये अच्छा लगा तुम घर आए मगर मुझे और भी अच्छा लगता अगर तुम पहले आ जाते मेरी सुनते फिर तुम अपनी सुनाते तुम्हें अपने हाथों से बना कर मस्त मसाला चाय भी पिलाते अब तो तुम्हरी बातों का कोई जवाब ना दे सकूँगा तुम्हारी आंखों में उमड़ते दर्द को अपने दिल पर ना ले सकूँगा शायद पहले चले आते तो मन का बोझ कुछ हल्का हो जाता तुम्हारे लिए जागता, यूं आंखें बंद कर हमेशा के लिए ना सो जाता चलो कोई बात नहीं तुमने कम से कम दुनियादारी के दस्तूर तो निभाए देर से ही सही मगर अच्छा लगा तुम घर तो आए धीरज झा अच्छा लगा