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धीरज झा

मैं चोर हूं...अपने पास से गुज़रने वाली हवा तक के अहसास चुरा कर लिख देता हूं । तुम्हारी ही बात तुम्हें बता कर तुमसे ही वाह वाही ले लेता हूं । हां मैं चोर ही तो हूं 😊 धीरज झा

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धीरज झा

मेरे लिए क्या है गांव ❤

मेरे लिए क्या है गांव ❤ #कविता

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धीरज झा

#ताकत 

गिरे हुए इंसान को उठने के लिए
नहीं होती ताकत की ज़रूरत 
उसे चाहिए सिर्फ और सिर्फ हिम्मत
नहीं चाहिए होती ताकत किसी कमज़ोर को
उसे चाहिए होता है सिर्फ प्रोत्साहन

#ताकत गिरे हुए इंसान को उठने के लिए नहीं होती ताकत की ज़रूरत उसे चाहिए सिर्फ और सिर्फ हिम्मत नहीं चाहिए होती ताकत किसी कमज़ोर को उसे चाहिए होता है सिर्फ प्रोत्साहन #कविता #breeze

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धीरज झा

तुम कहीं तो हो 

बातों में ही सही 
अहसासों में ही सही
तुम कहीं तो हो 
तुम कहीं तो हो 

ना साथ रहा, ना सही 
ना वो बात रही ना सही 
ना रहा वास्ता हमसे 
कोई गम नहीं 
तुम यादों में सही 
जज़्बातों में सही 
तुम कहीं तो हो 
तुम कहीं तो हो 

वादे पूरे ना हुए, ना सही 
सपने अधूरे ही रहे, कोई बात नहीं
चाय की प्याली खाली ही सही 
मुस्कुराहटें जाली ही सही 
फूल बन कर के मगर 
तुम किताबों में रही 
तुम कहीं तो हो 
तुम कहीं तो हो 

मुस्कुराहट बनोगी तुम मेरी 
तुमने कहा था या नहीं ?
चलो छोड़ो इसको 
जो बीती वो बात गई 
मुस्कुराहट ना सही  
बहते अश्कों में सही 
तुम कहीं तो हो 
तुम कहीं तो हो 

आंख जब बंद करूं 
सांसों को मंद करूं 
हाथ बढ़ा जो मैं लूं 
शायद तुम्हें छू मैं सकूं 
दिल मेरा कहता है मुझसे
तुम यहीं तो हो 
तुम यहीं तो हो 

धीरज झा तुम कहीं तो हो 

बातों में ही सही 
अहसासों में ही सही
तुम कहीं तो हो 
तुम कहीं तो हो 

ना साथ रहा, ना सही

तुम कहीं तो हो बातों में ही सही अहसासों में ही सही तुम कहीं तो हो तुम कहीं तो हो ना साथ रहा, ना सही #कविता

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धीरज झा

मां की कोख से निकल कर 
पिता की गोद में समा जाना 

मां की ममता में मिल कर 
पिता के रौब में इठलाना 

मां की मुस्कुराहटें बन कर
पिता का गुरूर बन जाना

मां के खयलों में होना शामिल
और पिता की यादों में खो जाना

बड़ी खुशनसीबी होती है दोस्त 
मां के दिल जैसा दिल और 
खुद पिता की सूरत जैसा हो जाना 

धीरज ❤विवेक भारती❤ मां की कोख से निकल कर 
पिता की गोद में समा जाना 

मां की ममता में मिल कर 
पिता के रौब में इठलाना 

मां की मुस्कुराहटें बन कर
पिता का गुरूर बन जाना

मां की कोख से निकल कर पिता की गोद में समा जाना मां की ममता में मिल कर पिता के रौब में इठलाना मां की मुस्कुराहटें बन कर पिता का गुरूर बन जाना

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धीरज झा

जो उसका था वो ले गया 🖤

जो उसका था वो ले गया 🖤

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धीरज झा

सबसे भारी होता है 
मन में दबी बातों को ना कह पाने का दुख
मौका मिलने के बावजूद भी चुप रह जाने का दुख

सबसे भारी होते हैं वो कदम
जिन्हें लौट आना पड़ता है महबूब के घर से 
बिना कुछ कहे

सबसे भारी होती है वो ज़िंदगी 
जहां सब होता है सिवाय उसके 
जिसके लिए ये सब कमाया होता है 

सबसे भारी होती है वो मौत 
जो अपने साथ ले जाती है
कुछ अधूरी चाहतें
अनकहे अहसास
और बहुत सी बातें 

मेरे दोस्त 

खुद को इतना कमज़ोर 
और 
ज़िंदगी को इतना भारी मत होने देना 
जो 
मन में हो उसे कह ज़रूर देना 

धीरज झा सबसे भारी होता है ❤

सबसे भारी होता है ❤ #कविता

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धीरज झा

किसी को क्या पता 💔

किसी को क्या पता 💔 #शायरी

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धीरज झा

जब मैं और मुझ में तुम रहा करोगी ❤❤
 
जब कोई पास ना होगा...
ना मेरे ना तुम्हारे...
तब थामेंगे एक दूसरे को...
कांपते हुए हाथ हमारे...

मेरी शर्ट के अनजाने में उल्टे बटनों को...
तुम सही किया करोगी...
अपनी कहीं भूला चुकी ऐनक 
का पता मुझ से लिया करोगी...

तब हम रखा करेंगे...
एक दूसरे की दवाईयों का हिसाब...
एक ही सिरहाने पर सर रख 
पढ़ा करेंगे हम दोनों की लिखी किताब...

मेरे सफेद हो चुके बालों में भी...
तुम जवानी के दिनों जैसे हाथ घुमाया करोगी...
बुढ़ी गर्दन को अपनी...
मेरे कमज़ोर पढ़ चुके कंधे पर टिकाया करोगी...

कोई ना होगा तब पास अपने...
बस मैं और मुझ में तुम रहा करोगी...
मेरे सठिया चुके दिमाग की चिढ़ चिढ़ी
बातें भी हंस कर सहा करोगी...

वो बुढ़ापा भी जवानी के दिनों से कम ना होगा...
वादा है मेरा खुशी से हो तो हो...
मगर ग़म से आंखों का दायरा तुम्हारा नम ना होगा...

धीरज झा... जब मैं और मुझ में तुम रहा करोगी

जब मैं और मुझ में तुम रहा करोगी #कविता

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धीरज झा

#भिखारी_बेटा 

मैंने देखा था एक रोज़
एक बेटे को भीख मांगते हुए
हट्टे-कट्टे नौजवान गबरू को
ट्रेन, बसों, मंदिर, मजारों 
गुरुद्वारों की खाक छानते हुए
मैंने देखा था एक रोज़
एक बेटे को भीख मांगते हुए

थे तन पर कपड़े अच्छे 
मगर भूखा लग रहा था
गोर चिट्टा लड़का जिसका
मुंह प्यास से सूखा लग रहा था
उस पढ़े लिखे को देखा 
इज़्ज़त अपनी खूँटी पे टांगते हुए
मैंने देखा था एक रोज़
एक बेटे को भीख मांगते हुए

कमाल की थी बात 
ना उसको थे रुपये पैसे चाहिए 
कह रहा था जिसको जो चाहिए 
मुझसे से ले जाइए 
नोट थे रखे हुए मगर 
झोली फैलाई थी 
ना जाने उसने शर्म
कहां बेच खाई थी 
सबके सामने झुका रहा था सिर
अपने उसूलों को लांघते हुए
मैंने देखा था एक रोज़
एक बेटे को भीख मांगते हुए

वो पैसे ना रुपये ना मदद मांग रहा था
'दुआ करना' सबसे उसने यही कहा था
था बाप लड़ रहा लड़ाई ज़िंदगी मौत की
अब दुआओं का था आसरा 
वैसे तो कोशिश बहुत थी कर ली 
हर जगह से दुआएं था इकट्ठी कर रहा 
आंखों के सामने जब था बाप मर रहा 
झूठी उम्मीद में जिये जा रहा था
सब कुछ सच जानते हुए
मैंने देखा था एक रोज़
एक बेटे को भीख मांगते हुए

धीरज झा #भिखारी_बेटा 

मैंने देखा था एक रोज़
एक बेटे को भीख मांगते हुए
हट्टे-कट्टे नौजवान गबरू को
ट्रेन, बसों, मंदिर, मजारों 
गुरुद्वारों की खाक छानते हुए
मैंने देखा था एक रोज़

#भिखारी_बेटा मैंने देखा था एक रोज़ एक बेटे को भीख मांगते हुए हट्टे-कट्टे नौजवान गबरू को ट्रेन, बसों, मंदिर, मजारों गुरुद्वारों की खाक छानते हुए मैंने देखा था एक रोज़

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धीरज झा

किसी के जीने की दुआ कर रहा हूं 
तब, जब मैं खुद धीरे धीरे मर रहा हूं

किसी के लिए मैंने तबाह कर ली ज़िंदगी अपनी
मौत एकदम पास आई तब सोचा 'ये मैं क्या कर रहा हूं'

धीरज झा
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