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न तेरे, न उनके, न ऐसे वैसे थे! हम थे तो "अनुज" ही

न तेरे, न उनके, न ऐसे वैसे थे! 
हम थे तो "अनुज" ही पर न ऐसे थे!! 
मुहब्बत या मजबूरी न मालूम था! 
उलझा हूँ अब तक कि दिन कैसे थे!! 
कागज के नोटों से कहता हूँ मैं अब! 
थीं खुशियां ही खुशियां जब न पैसे थे!! 
चालाकियों पर सबकी हंसी आ रही है! 
समय उनका था और वक्त के संदेशे थे!! 
आएगा वक्त तो बतलाऊंगा सबको! 
खुदगर्ज दुनिया में लोग कैसे-कैसे थे!!

©Anuj thakur "बेख़बर" ऐसे न थे
न तेरे, न उनके, न ऐसे वैसे थे! 
हम थे तो "अनुज" ही पर न ऐसे थे!! 
मुहब्बत या मजबूरी न मालूम था! 
उलझा हूँ अब तक कि दिन कैसे थे!! 
कागज के नोटों से कहता हूँ मैं अब! 
थीं खुशियां ही खुशियां जब न पैसे थे!! 
चालाकियों पर सबकी हंसी आ रही है! 
समय उनका था और वक्त के संदेशे थे!! 
आएगा वक्त तो बतलाऊंगा सबको! 
खुदगर्ज दुनिया में लोग कैसे-कैसे थे!!

©Anuj thakur "बेख़बर" ऐसे न थे