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गीली लकड़ी सा इश्क़ तुमने सुलगाया है, न पूरा जल पाय

गीली लकड़ी सा इश्क़ तुमने सुलगाया है,
न पूरा जल पाया कभी न ही बुझ पाया है।ग़म सलीके में थे जब तक हम खामोश थे,
जरा जुबान क्या खुली दर्द बे-अदब हो गए।

©HK Kushwaha
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