कुछ लोग जीवन में हवा की तरह हैं, जिनसे सांसें जुड़ी हैं,और उनका होना बेहद जरूरी है, और वो हैं भी बस प्रत्यक्ष दिखते नहीं, किन्तु जब उनकी उपस्थिति दिखती है तो आस-पास के जनजीवन को झकझोर देती है। साथ ही कुछ लोग पानी और रोशनी की तरह हैं, जिनका होना जरूरी भी है, और ये होने के साथ दिखते भी हैं। और कुछ लोग रात की तरह होते हैं, जो अपनी उपस्थिति के अहसास से ज्यादा किसी की अनुपसथिति का आभास कराते हैं। आकर चुपचाप बीत जाते हैं, ये हमारे जीवन में हैं भी और नहीं भी। मैं शायद वही रात हूं, हूं भी और नहीं भी। रात आती है,अंधेरे लिए ताकि बाहरी रोशनी से परे खुद को अपने साये से अलग कर देख सके, सारे मुखौटे हटा कर कुछ क्षण हम हम हो कर जी सके, खुद को अंधेरे में पहचान सके,थोड़ी देर ठहर सके,रुक कर अपना हालचाल ले सकें। पर आदत - सी हो गई है रोशनी की, शोहबत में इसकी अब दिनचर्या से रात ओझल हो चली है, ऐसी मजलिश लगी है कि दिन के उजाले में भी, रोशनी के आगोश में दिन में सो जाते हैं।