~~`` मैंने जज्ब से जीने का रुतबा बनाये रखा मौत को इस तरह जिंदगी के साये रखा। आफ़ते भी अब तो मुझसे डरने लगी है गले पड़ी आकर तो उन्हें सरकाये रखा। जो रुतबा मुझ में है किसी और में नही जख्मों को भी मुस्कुरा कर हँसाये रखा। मैं ठोकरों से ही नापता हूँ ऊंचाइयों को जिंदगी को तो मोहलतों पे किराये रखा। मैंने अपनी नाक का सवाल बना डाला मुसीबतों को तो नाकों चने चबाये रखा। तुम यूँ ही नाकामियों का रोना रोते हो मैंने तूफ़ान को कश्तियों से दहलाये रखा। कौन कहता कि आसमाँ पे घर नहीं बनते #राय ने तो हौसलों को सदा चढाये रखा। पी राय राठी भीलवाड़ा #जज्ब से जीने का रुतबा बनाये रखा