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ठोकरें खा कर भी तुम सम्हलते नहीं हो अपनी जिंदगी पर

ठोकरें खा कर भी तुम सम्हलते नहीं हो
अपनी जिंदगी पर खुद नज़र रखते नहीं हो
तरस आता है तुम्हारा ये ज़ख्म देखकर
आत्म मंथन के लिए कहीं ठहरते नहीं हो
ठोकरें खा कर.....
पढ़े लिखे विद्वान हो मां बाप के अभिमान हो
लेकिन शब्दों की मर्यादा समझते नहीं हो
संस्कारों से दूर विरान ज़िंदगी के उपवन में
अपने मालियों की बात कभी करते नहीं हो
ठोकरें खा कर.....
पीछे मुड़कर कभी तो देखते उन अश्कों को
जो तेरे भावों में बहते हैं उनमें बहते नहीं हो
कैसी बयार चली सूना कर गई हर आंगन को 
"सूर्य" छलावे सपने को सच में परखते नहीं हो
ठोकरें खा कर.....

©R K Mishra " सूर्य "
  ##ठोकरें  Suresh Gulia Sethi Ji Rama Goswami Satyajeet Roy Ƈђɇҭnᴀ Ðuвєɏ