बिन देखे ऐसी लगन लगी दर्शन होगा तो क्या होगा? सुनता हूँ रूप गर्विता है धरती पर पाँव नही पड़ते। सुनता हूँ उनके अधर सुघर फूलों को हँसी सिखाते हैं। सुनता हूँ उनके वाणी के सुर पाने को सरगम के भी जी ललचाते है। दृग नीली सागर पीली सी गहराई उनके अखियन में। उनके बड़री-बड़री अखियन के सम्मुख दर्पण होगा तो क्या होगा। दर्शन होगा तो क्या होगा?