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जो ज्ञान की भाषा है,विज्ञान की भाषा है वो हिंदी 

जो ज्ञान की भाषा है,विज्ञान की भाषा है 
वो हिंदी  मेरी बोली, स्वाभिमान की भाषा है । 

अंबर से आ नीचे, पर्वत को सहलाये 
झम झम गिरता झरना, कल-कल बहती जाये 
जो बसंती बयारों में,पावस की फुहारों में 2
कानन हो आनंदित,श्रृंगार की भाषा है । 

फिर प्रणय मिलन बेला, में महकी बहारें हैं
मदमस्त परागों से ,नवगीत रचे भंवरे
झुरमुट के झोखे से , झांके छुपके किरणे  2
उपवन की कोयलिया, के गान की भाषा है । 

गाए कोई फकीरा,गाए कोई गुरुवाणी
गुमनाम सितारों की, है कलम- ए -शहनाई
है भोर की कुछ शबनम,रणभेदी की गुंजन 2
जयहिंद के नारों में, बलिदान की भाषा है । 

हर शब्द के भाव अलग, हर भाव के शब्द नए
जितने रस जीवन के, सब रस की खान लिए 
हर रूप के हैं वर्णन , हर रंग भरे इसमें, 2
अब मान रही दुनिया, संसार की भाषा है ।

©कुमार जितेन्द्र
  हिंदी, मेरी बोली

हिंदी, मेरी बोली #कविता

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