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मैं दिल पे जब्र करूँगा तुझे भुला दूँगा, मरूँगा ख़ु

मैं दिल पे जब्र करूँगा तुझे भुला दूँगा,
मरूँगा ख़ुद भी तुझे भी कड़ी सज़ा दूँगा !!

हवा का हाथ बटाऊँगा हर तबाही में,
हरे शजर से परिंदे मैं ख़ुद उड़ा दूँगा !!

इसी ख़याल में गुज़री है शाम-ए-दर्द अक्सर,
कि दर्द हद से बढ़ेगा तो मुस्कुरा दूँगा !!

~मोहसिन नक़वी

©स्वर्गीय आनन्द राज आनन्द
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