White औरतों के साथ सबसे बड़ी हुई अन्यायपूर्ण नीति रही है उसे एक भावमय पुलिंदा मान लेना , उसके रोने को एक सामान्य प्रतिक्रिया मान लेना ,उसे रो लेने की स्वतंत्रता दे देना, शोक मनाने की छूट दे देना अगर शायद इनमें से कोई एक भी वर्जित होता तो शायद औरतें भी फेंक रही होती भोजनों की भरी थालियां उठा रही होती हाथ , धुत्त हो पड़ी रहती किसी नशे में मनचाहे जिसे उसपर उड़ेल देती अवसाद कर सकती जी भर क्रूरता कम से कम खुलकर जी तो सकती, चुन तो सकती थी अपने आवेगों की निकासी का रास्ता । मुक्त हो सकती थी अंदरूनी कलह से , हर दिन होते संघर्ष से, घुटते जीवन से पर भावाव्यक्ति को उनका जन्मसिद्ध अधिकार घोषित कर छीन ली गयी उनसे इस विषय पर तर्क करने की क्षमता । स्त्रियां को दी गई महज ये स्वतंत्रता कि वो या तो क्रोध को निकाल दे रुदन में या घोटकर पी जाए रसोईघर के गैरजरूरी कार्यो में उन्हें स्वतंत्रता नहीं कि खुलेआम प्रदर्शन करें धधकते प्रतिशोध का ना उन्हें स्वतन्त्रता की पुरुष के व्यवहार के विरुद्ध तर्क कर सकें । पुरुषों को भी दी जानी चाहिए स्वतंत्रता भावाव्यक्ति की रो देने की , दुःख कह देने की , बिलखकर जी भर सुबक लेने की ताकि कल को “आदमी है आ गया होगा गुस्सा ” की आड़ में ना हो क्रूरता #विरह ©पूर्वार्थ #Thinking