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#LabourDay ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं क

#LabourDay  ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.
आज ग़ुलों में हौड लगी है, ख़ुदका बाग़ बनाने की,
और माली भी देता राय, छिन के रोटी खाने की,
कैसे कहूँ जो बाँट के खाए मैं वो हिंदुस्तान हूँ.
ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.
छोड़ तिरंगा लहराते वो अपने झंडे शान से,
ह्रदय को मेरे छन्नी करते, उनके नारे बेईमान से,
गुज़रे साल सत्तर जब छूटा तीर कमान से,
अब तो वचन निभाओ भैया, जो किया था हिंदुस्तान से,
ना कल बदला ना बदला आज, मैं वही अरमान हूँ.
ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.
क्या बिगड़े है उन लोगों का जो रहे हैं बंगला बाड़ी में,
नाश विनाश हो हम लोगों का जो खाए कमाएँ दहाड़ी में,
वो महलों में बैठके फेंकें आज़ादी की ज्वाला,
हम रस्ते पर बैठ लुटाएँ इज़्ज़त बुर्ख़ा साड़ी में,
पल पल लुटती पल पल मरती, मैं भारत की संतान हूँ.
ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.

रविकुमार... ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.
आज ग़ुलों में हौड लगी है, ख़ुदका बाग़ बनाने की,
और माली भी देता राय, छिन के रोटी खाने की,
कैसे कहूँ जो बाँट के खाए मैं वो हिंदुस्तान हूँ.
ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.
छोड़ तिरंगा लहराते वो अपने झंडे शान से,
#LabourDay  ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.
आज ग़ुलों में हौड लगी है, ख़ुदका बाग़ बनाने की,
और माली भी देता राय, छिन के रोटी खाने की,
कैसे कहूँ जो बाँट के खाए मैं वो हिंदुस्तान हूँ.
ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.
छोड़ तिरंगा लहराते वो अपने झंडे शान से,
ह्रदय को मेरे छन्नी करते, उनके नारे बेईमान से,
गुज़रे साल सत्तर जब छूटा तीर कमान से,
अब तो वचन निभाओ भैया, जो किया था हिंदुस्तान से,
ना कल बदला ना बदला आज, मैं वही अरमान हूँ.
ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.
क्या बिगड़े है उन लोगों का जो रहे हैं बंगला बाड़ी में,
नाश विनाश हो हम लोगों का जो खाए कमाएँ दहाड़ी में,
वो महलों में बैठके फेंकें आज़ादी की ज्वाला,
हम रस्ते पर बैठ लुटाएँ इज़्ज़त बुर्ख़ा साड़ी में,
पल पल लुटती पल पल मरती, मैं भारत की संतान हूँ.
ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.

रविकुमार... ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.
आज ग़ुलों में हौड लगी है, ख़ुदका बाग़ बनाने की,
और माली भी देता राय, छिन के रोटी खाने की,
कैसे कहूँ जो बाँट के खाए मैं वो हिंदुस्तान हूँ.
ना मैं शर्मा, ना मैं ख़ुराना, ना मैं कोई ख़ान हूँ,
भुल गई है दुनिया जिसको, मैं वही आम इंसान हूँ.
छोड़ तिरंगा लहराते वो अपने झंडे शान से,