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ravikumarpanchwa9463
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Ravi Kumar Panchwal

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Ravi Kumar Panchwal

नही मिलता अब सुकूं 

दुनिया और दुनियादारी में,

पल पल जैसे जलता है

मन की बेकरारी में,

मैं क्या हूँ, क्यों हूँ ? समझ नहीं आता,

बस भटकता फिरता हूँ ज़माने की बदहाली में.

ऐ ख़ुदा अब तू राह दिखा 

बेगुनाह बैठा हूँ तेरी कोतवाली में...

रविकुमार

©Ravi Kumar Panchwal #traintrack
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Ravi Kumar Panchwal

जो दर्द सुकून देता था,
वो दर्द भी गुज़र गया,
जिसके भरोसे हम ज़िंदा थे,
वो कमबख़्त आज मर गया।
रविकुमार

©Ravi Kumar Panchwal #Light
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Ravi Kumar Panchwal

ये वक़्त भी ना, बड़ी जल्दी गुज़र जाता है।

ये वक़्त भी ना, बड़ी जल्दी गुज़र जाता है। #कविता

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Ravi Kumar Panchwal

#emotionalstory 
कला हर पर मेहरबां नहीं होती..

#emotionalstory कला हर पर मेहरबां नहीं होती.. #शायरी

27 Views

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Ravi Kumar Panchwal

ज़ख़्म ताज़े थे, तो दर्द भी मीठा था,
ज़ख़्म जो निशां बने, तो दर्द निशां खो बैठा।
भूक जब मासूम थी, तो हम सोने की चिड़िया थे,
भूक जो गुमराह हुई, मैं नफ़रत के बीज बो बैठा।
रविकुमार

©Ravi Kumar Panchwal #Currency
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Ravi Kumar Panchwal

कमियाँ क्या भांपता है, ख़ूबियों पे ग़ौर कर,
अदना है ग़म ये तेरा, ख़ुशियों का शोर कर।
कह तो दिया ख़ुदा ने, मेहमां है तू जहाँ में,
सदियां क्या नापता है, हर पल को दौर कर।
रविकुमार

©Ravi Kumar Panchwal #boat
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Ravi Kumar Panchwal

ख़ुशहाल था घरौंदा मेरा, 
                 उसके आने से पहले,
खंडर सा हो गया है, 
                 उसके जाने के बाद।
आँखों में रौनक, ख़्वाबों में ख़ुशबू, ज़िंदगी में तमन्नाएँ थीं,
                 उसके आने से पहले,
बंजर सा हो गया हूँ, 
                 उसके जाने के बाद।
और क़ाश मर ही जाता, उसके आने से पहले,
तो आज ज़िंदा होता, उसके जाने के बाद।
रविकुमार

©Ravi Kumar Panchwal #alone
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Ravi Kumar Panchwal

काश बदल पाता क़िरदार कुछ कहानी के,
तो बेगुनाह उम्र यूँ आँखों से ना पिघलती।
नादां मेरे ख़्वाब हो जाते जो दर्पन से रु ब रु,
तो आज अक्स देखकर चीख़ें ना निलकती।
रविकुमार

©Ravi Kumar Panchwal
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Ravi Kumar Panchwal

Travel quotes in Hindi सफ़र आसां नहीं उसपर तू अकेला है,
जिनके बीच घिरा है तू खुगर्ज़ों का मेला है,
ज़िंदगी कम उम्र और उम्मीद बड़ी है तेरी,
सपने उजले उजले हैं और रास्ता मैला है।
रविकुमार

©Ravi Kumar Panchwal
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Ravi Kumar Panchwal

फुल कागज़ के क्यूँ खिले हैं गुलिस्तां में,
ऐसी क्या वजह थी मुखौटे लगाने की।
मुह से तो कहते हो भारत मेरा देश है,
ऐसी क्या वजह थी ज़ाती परचम बनाने की।
बस नारों का शोर है, एकता में शक्ति है,
भीड़ के चेहरे पर फ़र्ज़ी देशभक्ति है,
वर्चस्व की आग में क्रांति झुलस गई,
ऐसी क्या वजह थी मशालें जलाने की।
कभी अपने आपसे बात करके देखो,
दस्तख़त तो कर दिए, विरासत पढ़के देखो,
ख़ून से लतपत बैठा है ज़मीर धर्म के नुक्कड़ पर,
ऐसी क्या वजह थी पत्थर उठाने की।
फुल कागज़ के क्यूँ खिले हैं गुलिस्तां में,
ऐसी क्या वजह थी मुखौटे लगाने की।
रविकुमार

©Ravi Kumar Panchwal
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