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उड़ा रहा हूं मैं कागज का इक जहाज थाह पाने के

   उड़ा रहा हूं मैं कागज का इक जहाज
   थाह पाने के लिए आसमा की आज
         निकल पड़ा है चीरते हुए हवाओं को
         समझ करके मेरे दिल की भावनाओं को
   ऐसा लगता है उड़ चला है कोई बाज़
         उसके पंखों पे बैठ उड़ चली मेरी खुशियां
         जैसे जलने लगी मन में तमाम फुलझड़िया
   उसके पंखों ने रख लिया हैमेरी लाज
         लौट आएगा बांध करके जीत का सेहरा
         सोच कर के ही खिल उठा है मेरा चेहरा
   उसको पहनाऊंगा मैं तालिया का ताज

©Sunil Kumar Maurya Bekhud
  कागज का जहाज

कागज का जहाज #कविता

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