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White शाख से टूट कर हम जाये तो कहाँ कोई ठिकाना नही

White शाख से टूट कर हम जाये तो कहाँ
कोई ठिकाना नहीं, न कोई आशियाँ
 वक़्त का परिंदा किस भरम मे उड़ा
कैदखाने ही मिले उसे यहाँ-वहाँ
आलम-ए-बेरुखी किसने दी मुझको
मै भटक रहा हूं कब से वीराने में यहाँ

akashh_bharti ✍️

©Guftgoon Lafzon Se (GLS)
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