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जोश से भरे हैं, क्रूरता से न डरे हैं,, बातों में

जोश से भरे हैं, 
क्रूरता से न डरे हैं,,
बातों में खरे  हैं, 
लालच से परे हैं। ।
छल में हाथ धरे हैं, 
मुख में राम राम हरे हैं,,
कितनी प्रदूषित यहां ज़र्रे हैं, 
फिर भी लोग कहें,
अभी हम न मरे हैं। ।
घाव जरा गहरे हैं, 
शांत पड़ी नहरें हैं,,
व्याप्त लोभ के पहरे हैं, 
हर मर्तबा झंडे झूठ के ही फहरे  हैं। ।
चट्टानों से गुजरे हैं, 
हर तरफ फरेब के मुजरे हैं,,
संकुचित लोगों की सोच यहां, 
अपने अपने यहां खतरे हैं। ।
written by संतोष वर्मा azamgarh वाले 
खुद की जुबानी

©Santosh Verma
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