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वाह रे सभ्य समाज समय पुराना था तन ढँकने को कपड़े न

वाह रे सभ्य समाज

समय पुराना था
तन ढँकने को कपड़े न थे,
फिर भी लोग तन ढँकने का,प्रयास करते थे ।
आज कपड़ों के भंडार हैं,फिर भी तन दिखाने का
प्रयास करते हैं,समाज सभ्य जो हो गया हैं ।

समय पुराना था, आवागमन,के साधन कम थे।
फिर भी लोग परिजनों से,मिला करते थे।
आज आवागमन के,साधनों की भरमार है।
फिर भी लोग न मिलने के,बहाने बनाते हैं ।
समाज सभ्य जो हो गया हैं ।

समय पुराना था,घर की बेटी, पूरे गाँव की बेटी होती थी।
आज की बेटी ही पड़ोसी से ही असुरक्षित हैं ।
समाज सभ्य जो हो गया हैं ।

समय पुराना था, लोग,
नगर-मोहल्ले के बुजुर्गों का,हालचाल पूछते थे ।
आज माँ-बाप तक को,वृद्धाश्रम में डाल देते हैं ।
समाज सभ्य जो हो गया हैं ।

समय पुराना था,खिलौनों की कमी थी ।
फिर भी मोहल्ले भर के बच्चों के,साथ खेला करते थे ।
आज खिलौनों की भरमार है,,पर बच्चे मोबाइल की जकड़ में बंद हैं ।
समाज सभ्य जो हो गया हैं ।

समय पुराना था,गली-मोहल्ले के पशुओं
तक को रोटी दी जाती थी ।,
आज पड़ोसी के बच्चे भी,भूखे सो जाते हैं ।
समाज सभ्य जो हो गया हैं ।

समय पुराना था,नगर-मोहल्ले मे आए
अपरिचित का भी पूरा,परिचय पूछ लेते थे ।
आज तो पड़ोसी के घर,आए अतिथि का नाम भी,नहीं पूछते ।
समाज सभ्य जो हो गया हैं ।

वाह रे सभ्य समाज

©पूर्वार्थ
  # वाह रे सभ्य समाज

# वाह रे सभ्य समाज #Poetry

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