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वक्त रेत सा फिसल रहा, ना जाने ये कैसी कसमकस में गु

वक्त रेत सा फिसल रहा,
ना जाने ये कैसी कसमकस में गुजर रहा,
चाहता किसी को ये पास लाना,
ना जाने क्यूं ये उस से बिछड़ रहा  ।

अरमान  वक्त के दरिया में बह रहे,
हर पल जैसे घूट घूट हम मर रहे,
रोकते हैं ,हम खुद को हर डगर,
भुला ना सकते  प्यार को मगर ।।

©Dayal "दीप, Goswami.. -hardik Mahajan J P Lodhi. Sethi Ji heartlessrj1297 Bhavana kmishra Rajesh rajak