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चलो खुश हो लो तुम, नहीं दूँगी मैं उलाहना कोई, न पू

चलो खुश हो लो तुम, नहीं दूँगी मैं उलाहना कोई,
न पूछुंगी  कोई प्रश्न कि क्यूँ मन की बात बतायी नहीं।
न आज,याद दिलाऊंगी कि अंतिम बार कब थी रोयी,
न कहूँगी तुम्हें ढूंढ लाने को,मानवता की मुस्कान खोयी।
मैं नहीं समझ पाती जटिल विचारों में उलझी विद्वता,
और गूढ दर्शन,
इतना ही जान पाती हूँ कि ये ख्यालों की खुरचन है,
बिना समझे जीवन के साथ मुस्कुराने में अड़चन है।
मुस्कान मानव की जरूरत नहीं,
सरल मन में  खिली इंसानियत है,
जबतक इसे जरूरत और चाहत बना कर रखेंगे,
पाने की जद्दोजहद में, खुद से ही लड़ते रहेंगे।
इसलिए मुझे कहीं दूर नहीं जाना,
बस बंद आँखों के पीछे से गहरी खामोशी में 
उतर जाना है,
अपनी रोशनी में देखें तो खुद के अंदर ही ये खजाना है। चलो खुश हो लो तुम, नहीं दूँगी मैं उलाहना कोई,
न पूछुंगी  कोई प्रश्न कि क्यूँ मन की बात बतायी नहीं।
न आज,याद दिलाऊंगी कि अंतिम बार कब थी रोयी,
न कहूँगी तुम्हें ढूंढ लाने को,मानवता की मुस्कान खोयी।
मैं नहीं समझ पाती जटिल विचारों में उलझी विद्वता,
और गूढ दर्शन,
इतना ही जान पाती हूँ कि ये ख्यालों की खुरचन है,
बिना समझे जीवन के साथ मुस्कुराने में अड़चन है।
चलो खुश हो लो तुम, नहीं दूँगी मैं उलाहना कोई,
न पूछुंगी  कोई प्रश्न कि क्यूँ मन की बात बतायी नहीं।
न आज,याद दिलाऊंगी कि अंतिम बार कब थी रोयी,
न कहूँगी तुम्हें ढूंढ लाने को,मानवता की मुस्कान खोयी।
मैं नहीं समझ पाती जटिल विचारों में उलझी विद्वता,
और गूढ दर्शन,
इतना ही जान पाती हूँ कि ये ख्यालों की खुरचन है,
बिना समझे जीवन के साथ मुस्कुराने में अड़चन है।
मुस्कान मानव की जरूरत नहीं,
सरल मन में  खिली इंसानियत है,
जबतक इसे जरूरत और चाहत बना कर रखेंगे,
पाने की जद्दोजहद में, खुद से ही लड़ते रहेंगे।
इसलिए मुझे कहीं दूर नहीं जाना,
बस बंद आँखों के पीछे से गहरी खामोशी में 
उतर जाना है,
अपनी रोशनी में देखें तो खुद के अंदर ही ये खजाना है। चलो खुश हो लो तुम, नहीं दूँगी मैं उलाहना कोई,
न पूछुंगी  कोई प्रश्न कि क्यूँ मन की बात बतायी नहीं।
न आज,याद दिलाऊंगी कि अंतिम बार कब थी रोयी,
न कहूँगी तुम्हें ढूंढ लाने को,मानवता की मुस्कान खोयी।
मैं नहीं समझ पाती जटिल विचारों में उलझी विद्वता,
और गूढ दर्शन,
इतना ही जान पाती हूँ कि ये ख्यालों की खुरचन है,
बिना समझे जीवन के साथ मुस्कुराने में अड़चन है।

चलो खुश हो लो तुम, नहीं दूँगी मैं उलाहना कोई, न पूछुंगी कोई प्रश्न कि क्यूँ मन की बात बतायी नहीं। न आज,याद दिलाऊंगी कि अंतिम बार कब थी रोयी, न कहूँगी तुम्हें ढूंढ लाने को,मानवता की मुस्कान खोयी। मैं नहीं समझ पाती जटिल विचारों में उलझी विद्वता, और गूढ दर्शन, इतना ही जान पाती हूँ कि ये ख्यालों की खुरचन है, बिना समझे जीवन के साथ मुस्कुराने में अड़चन है। #जरूरत #yqbaba #yqdidi