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कविता का शीर्षक : अगर ये इश्क है तो हां बेपनाह मोह

कविता का शीर्षक : अगर ये इश्क है तो हां बेपनाह मोहब्बत है मुझे तुमसे

किसी को देखना , मुस्कुराना और  खो जाना,
चंद मुलाकातों में उसी का हो जाना
दिल में उसे बसाना और आंखो में उसकी तस्वीर सजा के सो जाना
अगर ये इश्क है तो हां बेपनाह मोहब्बत है मुझे तुमसे!!

हर पल किसी की यादों में रहना , उसकी परवाह करना
उसको हंसता हुआ देख दिल को सुकून मिलना
चुपके से उसे देखना और उसके देखते ही नज़रे फेर लेना
अगर ये इश्क है तो हां बेपनाह मोहब्बत है मुझे तुमसे!!

व्हाट्सएप पे उसको ऑनलाइन चेक करना,
फेसबुक और इंस्टा पे उसकी प्रोफाइल बार बार देखना
फिर भी फ्रेंड रिक्वेस्ट ना भेजना
दिल के जज्बात उससे छुपाना और उसकी परवाह करना 
अगर ये इश्क है तो हां बेपनाह मोहब्बत है मुझे तुमसे!!

छोटी छोटी बातो पे बहस करना और लड़ना झगड़ना
उससे रूठना और बिन मनाए ही मान जाना
उसको परेशान देख बेचैन हो उठना
हमेशा उसकी खुशी की रब से फरियाद करना 
अगर ये इश्क है तो हां बेपनाह मोहब्बत है मुझे तुमसे!!


वो भी तुम्हे चाहती है ये जानते हुए भी कुछ ना कहना 
उसके मुस्कुराते चेहरे को देख भर लेने से मेरा दिन बन जाना
उसे खोने के डर से उससे दूरी बनाना
इतनी मोहब्बतों के बाद भी इजहारे इश्क ना करना
अगर ये इश्क है तो हां मेरी जान बेपनाह मोहब्बत है मुझे तुमसे!!


कवि : इंद्रेश द्विवेदी (पंकज)
सोनिया विहार दिल्ली

©Indresh Dwivedi
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