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लड़ाई अब महज़ इक शौक़ है लड़ते रहो निशाँ इंसानियत

लड़ाई अब  महज़  इक शौक़ है  लड़ते  रहो
निशाँ  इंसानियत का  तुम कभी का धो गए !

नहीं मिलता कोई अब  अश्क जो पोंछे यहाँ
लहू के  इस  समंदर  में  ख़ुदा  भी  सो  गए !

©malay_28
  #आग
malay285956

malay_28

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