कभी हवाओं से,फितरत हमारी पूछ लेना, मैं आशिक हूॅ,आवारा नहीं हूॅ। उड़ी जुल्फों में समा जाऊं, आदत नहीं अपनी, मैं खूश्बू का हरकारा नहीं हूॅ। शिकस्त खायी हैं बहुत,जमाने वालों, अभी तक,मगर हारा नहीं हूॅ। कोई मन्नत न मांग,ए दोस्त रुक जा, मैं कोई टूटा,तारा नही हूॅ। कभी ज़मीं,कभी आसमां,पे नज़र रखता हूॅ, पांव मिट्टी पे है,बेचारा नहीं हूॅ। मनीष तिवारी ©Manish ghazipuri #GoldenHhour