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unionbankromauma4970
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Manish ghazipuri

simple and normal boy and writer

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Manish ghazipuri

White सांझ  ढले  भी चलते रहना,मजबूरी थी,
रात  रात  भर जलते रहना, मजबूरी थी।
अंधेरे   को  कुछ  तो फर्क,पड़ा ही होगा,
जुगनू बन कर राह दिखाना,मजबूरी थी।

उजियारे में कौन भला, अब याद करेगा,
कौन  भला  बीती  रातों,की बात करेगा।
थके   हुए  पंखों  में वो, परवाज़ कहां है,
फिर भी राहों में उड़ते रहना, मजबूरी थी।

कौन  सुनेगा  चीख, समय की आपाधापी,
कौन   बनेगा  मीत, समय  की आपाधापी।
अपनी ही शब्दों की,प्रतिध्वनि सून लेता हूं,
"रहो  जागते"  कहते  रहना,  मजबूरी   थी।

©Manish ghazipuri #GoodMorning
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Manish ghazipuri

White पाप  पुन्य  का  लेखा  जोखा तुम ही रखना,
तन मन धन का लेखा जोखा तुम ही रखना।
अपना  तो  बस  काम राह पर चलते रहना,
राहों  से  पहचान  बना  कर तुम ही रखना।

कहीं ठहरना, फिर चल देना आदत अपनी,
और हवावों के जैसी कुछ फितरत अपनी।
क्या खोया क्या पाया इतनी समझ कहां है,
हानि लाभ का लेखा जोखा तुम ही रखना।

दुख सुख का अनुमान लगा कर राह बदल लूं,
तुफानों   के   डर   से   अपनी  चाह बदल लूं।
खेल  रहा  झंझावातो  से निशि दिन प्रतिपल,
परिणामो   का   लेखा जोखा  तुम  ही रखना।

©Manish ghazipuri #sad_quotes
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Manish ghazipuri

White कर रही अफसोस जाहिर,कातिल हवाऐं,
माफीनामा    लिख    रही, काफिर हवाऐं।
डालियां   फिर   क्या, तने से जुड़ सकेंगी,
फिर   रुदन  क्यों, कर  रही शातिर हवाऐं।

फिर   किसी   अनुबंध   की,  बातें चलेंगी,
फिर   नये    संबंध    की,    बातें   चलेंगी।
दस्तावेज़ो   पर   कलम,  दस्तख़त  करेगी,
अब   कभी   मदहोश   ना,  होगी   हवाऐं?

                                 ..…..…....….. मनीष तिवारी

©Manish ghazipuri #GoodMorning जाहिलो की टोली।

#GoodMorning जाहिलो की टोली। #शायरी

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Manish ghazipuri

White कर रही अफसोस जाहिर,कातिल हवाऐं,
माफीनामा    लिख    रही, काफिर हवाऐं।
डालियां   फिर   क्या, तने से जुड़ सकेंगी,
फिर   रुदन  क्यों, कर  रही शातिर हवाऐं।

फिर   किसी   अनुबंध   की,  बातें चलेंगी,
फिर   नये    संबंध    की,    बातें   चलेंगी।
दस्तावेज़ो   पर   कलम,  दस्तख़त  करेगी,
अब   कभी   मदहोश   ना,  होगी   हवाऐं?

                                 ..…..…....….. मनीष तिवारी

©Manish ghazipuri #GoodMorning  जाहिलो की टोली

#GoodMorning जाहिलो की टोली #विचार

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Manish ghazipuri

White बिन  शब्दों के दर्द कह रहे,
बिन आँसू हर मर्म कह रहे। 
घर  की  दीवारों  की  बाते,
जाने  कितनी  बार सह रहे।
बिन शब्दों के दर्द कह रहे।
नींव  की  ईटो से जा पूछो,
कैसे    बोझ    उठाते    हैं।
गुमनामी   के  घोर अन्धेरो,
में   भी   फर्ज   निभाते  हैं।
आँगन की  दीवार ने  पूछा,
कैसे  इतना  भार  सह  रहे।
बिन शब्दों  के  दर्द कह रहे।
वैभव  सारा  देख रहा  जग,
परकोटे    की    दीपो     से,
नभचुम्मी   मीनारे   दीखती,
चाँद  सितारों   के    घर  पे।
निर्विकार औ अटल खड़ा हूँ।
उम्मीदो   में   प्राण  भर  रहे।
बिन   शब्दों  के  दर्द कह रहे।
ना  पहचाने  ये  जग  मुझको,
भले    ना    कोई    मान    दे।
इतिहासो    में    दर्ज   नही हूँ,
ना     आशा      सम्मान     दे,
"नीव  का   पत्थर"  हूँ मैं यारो,
हर  युग का  हम श्राप सह रहे।
बिन  शब्दों  के  दर्द  कह रहे।
बिन  आँसू  हर  मर्म कह रहे।

©Manish ghazipuri #alone_sad_shayri
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Manish ghazipuri

White बोल उठा अन्तर्मन घायल,
टूटा     दर्पण  बोल   उठा।
हूक उठी सीने में जब जब,
तन  मन  सारा  डोल उठा।

आँख  से  आँसू  ऐसे बरसे,
जैसे  सावन  बरस रहा हो।
प्रेम  की  पाती में लगता है,
जैसे   कोई   तरस  रहा हो।
शब्द  शब्द पर भारी पड़ता,
एक  शब्द  कुछ बोल उठा।
छिपी  हुई पीड़ा से व्याकुल,
वह मुखरित सब बोल उठा।

बहुत जतन पर छिपा न पाया,
घर  आँगन   सब  बोल  उठा।
तारो  ने  सब  कुछ  देखा पर,
चाँद   गगन  का  बोल   उठा।
बोल   उठा  अन्तर्मन  घायल,
टूटा    दर्पण    बोल     उठा।
हूक  उठी  सीने  में जब जब,
तन  मन   सारा   डोल  उठा।

                                 मनीष गाजीपुर

©Manish ghazipuri #moon_day
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Manish ghazipuri

White अनछुआ एहसास पल पल,
हो रहे आघात पल पल।
स्वप्न में उलझे हुऐ मन,
हल नहीं तुम पा सकोगे।
अब कहाँ तुम जा सकोगे।

रोज इक सूरज उगा कर,
कब तलक मैं धूप डालू।
ढल रहे इस रुप को अब,
निष्प्रयोजन क्यूँ निहारू।
सूखती इस झील में तुम,
अब कँवल ना पा सकोगे।
पर ना वापस जा सकोगे।

एक सावन के भरोसे,
कितने पतझड़ आ चुके हैं।
चहचहाते घोसलों से,
सारे बच्चे जा चुके हैं।
फिर घटाऐ घिर भी जाऐ,
मेरा सावन ला सकोगे।
फिर मुझे क्या पा सकोगे।
फिर मुझे क्या पा.........।

©Manish ghazipuri #love_shayari  शायरी मोटिवेशनल मोटिवेशनल कविता इन हिंदी Sushant Singh Rajput

#love_shayari शायरी मोटिवेशनल मोटिवेशनल कविता इन हिंदी Sushant Singh Rajput

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Manish ghazipuri

White जीवन पग  पग नाप रहे हैं,
सपने  पग  पग नाप रहे हैं।
सांचे  में  चेहरे  हैं    जितने,
पग  पग  चेहरे छाप रहे हैं।
जीवन पग पग नाप रहे हैं।

अंतस  पीड़ा  उपहारों की,
होठों   पर   मुस्कान  लिए।
दग्ध हृदय,तपते अंन्तस्थल,
जीवन  भर  का शाप लिए।
कांप  रहे  पांवों  को  स्थिर,
कर  राहों  को  नाप  रहे  हैं।
सपने  पग  पग  नाप रहे हैं।

अस्ह्य  वेदनावो   से  छलनी,
शून्य  में  आंखें  टिकी   हुई।
लगता   है  बीणा  के   तारो,
में      स्पंदन    रुकी      हुई,
फिरा फिरा कर स्वयं हथेली,
धड़कन अपनी  भांप  रहे हैं।
जीवन  पग पग  नाप  रहे हैं।
सपने   पग  पग  नाप  रहे हैं।

©Manish ghazipuri जीवन

जीवन #विचार

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Manish ghazipuri

White तुम्हें     कितना    मनाऊं,    थक    गया  हूं,
तुम्हें   क्या   क्या    बताऊं,   थक   गया  हूं।
कहा     था     रुठना,    बेहद   सलीके    से,
समझाऊं     भला    कैसे,   थक   गया    हूं।

हमारे   बीच  की  ये  दुरियां, दूरी नहीं लगती,
तुम्हारा देखना निर्निमेष ,मजबूरी नहीं लगती।
कोई  तो  बात  है,न हम समझे, न तुम समझे,
बतलाऊं   तुम्हें   कैसे,     थक     गया      हूं।

चलो छोड़ो मनाते हैं,भला  अब मान भी जाओ,
नये सपने सजाते हैं, भला अब मान भी जाओ।
चलो  अब   थाम  लो,मेरी  कंपती उंगलियों को,
यही  तो   उम्र   की रानाईयांं  है,  थक   गया  हूं। 

                                                    मनीष तिवारी।।

©Manish ghazipuri
  #sad_shayari थक गया हूं

#sad_shayari थक गया हूं #विचार

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Manish ghazipuri

White पुछेंगे   सब   हाल,  तुम्हारा  बारी  बारी,
कर   देंगे   बेहाल, तुम्हें  सब  बारी बारी।
गुलशन में कुछ फुल खिले हैं मुश्किल से,
बर्बाद  करेंगे  गुलशन को सब बारी बारी।

कुछ   पल  कुछ संन्यासी होंगे बारी बारी,
कुछ  क्षण  को अविनाशी होंगे बारी बारी।
चंदन, अगरु,  तिलक लगाऐ तन महकेंगे,
बिष उगलेंगे मिलजुल कर सब बारी बारी 

बैरागी    बन   आयेंगे   सब   बारी  बारी,
परिधानों   में    वेष    धरेंगे    बारी बारी।
तन   बैरागी   मन   अनुरागी   वाले होंगे,
बन   भुजंग  फिर फुफकारेंगे बारी बारी।

गीता और पुरान सभी को अस्त्र  बना कर,
रामायन की महिमा को भी शस्त्र बना कर।
अनाचार   में   लिप्त    सदाचारी    आयेंगे,
दर्शन   पूजन    करवायेंगे    बारी     बारी।

फिर कबिरा की सिसकी,औ आंसू तुलसी के,
कैसे  वंशज    कहलायेंगे, मां    हुलसी     के।
मीरा  और   रसखान   कहीं   न   खो   जाये,
खुद  कर   लें  अनुमान  चलो हम बारी बारी। 
 

                                               मनीष तिवारी।

©Manish ghazipuri #बारी बारी से

#बारी बारी से #विचार

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