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इस दुनिया में इंसान अकेला ही आया है और अकेला ही जा

इस दुनिया में इंसान अकेला ही आया है और अकेला ही जायेगा, ज़िन्दगी की राहों में कुछ लोग जुड़ते रहेंगे तो कुछ लोग बिछड़ते रहेंगे, मुकम्मल हयात किसी को नसीब नहीं और ना ही किसी की ज़िंदगी मुकर्रर है,
हम इस बात से परेशान है और टूट चुके हैं कि कोई अपना जो बहुत ही करीबी था जिसके बगैर ज़िन्दगी जीने का तसव्वुर भी नहीं कर सकता वो आज हमारे साथ नहीं है, उसी ग़म में अपनी ज़िंदगी को खत्म किये जा रहे हैं। फिर तो हमें ये सोचने की जरूरत है कि जिस ईश्वर पर हमें यकीन है, उसके यकीन पर है ये भी सोचना है कि जो चला गया वो कहीं न कहीं से अपने चाहने वाले को देख रहे होंगे, फिर तो हम उन्हें मरने के बाद भी बेसुकून कर रहे हैं।
इंसान एक सामाजिक प्राणी है, हम समाज व समाज के लोगों से नाना प्रकार से जुड़े रहते हैं। इंसान तो वही है जो दूसरों के लिए अपनी ज़िंदगी को वक्फ कर दे। खुद के लिए जिया तो क्या जीया..... कभी हम परिवार के लिए जीते हैं तो कभी समाज के लिए।
हमें कई दफा लगता है हम बिल्कुल अकेले हैं कोई भी अपना नहीं है, फिर तो हम सच्चाई से भागते हैं, जो चला गया उसको तो वापस ला नहीं सकते लेकिन जो आस-पास हैं उन्हें दुःख देने का हमें कोई अधिकार नहीं है।
अंत में जब जीने की इच्छा खत्म हो जाये और कोई चाहत ना बची हो तो अपनी ज़िंदगी उन लोगों के नाम कर दें जिनको आपकी जरूरत है।
वैसे भी गरीब खुद को कभी अकेला महसूस नहीं करता क्योंकि उन्होंने अपना पूरा जीवन ऐसे ही गुज़ारा है इसलिए किसी के आने व जाने से कुछ खास फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि उन्होंने इसे अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया।
ज्यादा अकेलेपन का शिकार अमीर लोग ही हैं जिनके पास हर सुविधा उपलब्ध है ज्यादातर मानसिक रोग व हृदय की बीमारियों से इसी तबके के लोग परेशान रहते हैं। अगर आपके पास जरूरतमंदों को देने को कुछ है तो जरूर दीजिये, कुछ नहीं तो अपना वक़्त जरूर दें। गरीब लोग पैसों के नहीं बल्कि प्यार व इज़्ज़त के भूखे होते हैं।

अकेलापन कोई रोग नहीं है बल्कि हमने इसे अपना रोग मान लिया है, सच्चाई से हमेशा दूर भागना कोई रोग नहीं है....

©हेसाम #हेसाम 
#Journey
इस दुनिया में इंसान अकेला ही आया है और अकेला ही जायेगा, ज़िन्दगी की राहों में कुछ लोग जुड़ते रहेंगे तो कुछ लोग बिछड़ते रहेंगे, मुकम्मल हयात किसी को नसीब नहीं और ना ही किसी की ज़िंदगी मुकर्रर है,
हम इस बात से परेशान है और टूट चुके हैं कि कोई अपना जो बहुत ही करीबी था जिसके बगैर ज़िन्दगी जीने का तसव्वुर भी नहीं कर सकता वो आज हमारे साथ नहीं है, उसी ग़म में अपनी ज़िंदगी को खत्म किये जा रहे हैं। फिर तो हमें ये सोचने की जरूरत है कि जिस ईश्वर पर हमें यकीन है, उसके यकीन पर है ये भी सोचना है कि जो चला गया वो कहीं न कहीं से अपने चाहने वाले को देख रहे होंगे, फिर तो हम उन्हें मरने के बाद भी बेसुकून कर रहे हैं।
इंसान एक सामाजिक प्राणी है, हम समाज व समाज के लोगों से नाना प्रकार से जुड़े रहते हैं। इंसान तो वही है जो दूसरों के लिए अपनी ज़िंदगी को वक्फ कर दे। खुद के लिए जिया तो क्या जीया..... कभी हम परिवार के लिए जीते हैं तो कभी समाज के लिए।
हमें कई दफा लगता है हम बिल्कुल अकेले हैं कोई भी अपना नहीं है, फिर तो हम सच्चाई से भागते हैं, जो चला गया उसको तो वापस ला नहीं सकते लेकिन जो आस-पास हैं उन्हें दुःख देने का हमें कोई अधिकार नहीं है।
अंत में जब जीने की इच्छा खत्म हो जाये और कोई चाहत ना बची हो तो अपनी ज़िंदगी उन लोगों के नाम कर दें जिनको आपकी जरूरत है।
वैसे भी गरीब खुद को कभी अकेला महसूस नहीं करता क्योंकि उन्होंने अपना पूरा जीवन ऐसे ही गुज़ारा है इसलिए किसी के आने व जाने से कुछ खास फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि उन्होंने इसे अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया।
ज्यादा अकेलेपन का शिकार अमीर लोग ही हैं जिनके पास हर सुविधा उपलब्ध है ज्यादातर मानसिक रोग व हृदय की बीमारियों से इसी तबके के लोग परेशान रहते हैं। अगर आपके पास जरूरतमंदों को देने को कुछ है तो जरूर दीजिये, कुछ नहीं तो अपना वक़्त जरूर दें। गरीब लोग पैसों के नहीं बल्कि प्यार व इज़्ज़त के भूखे होते हैं।

अकेलापन कोई रोग नहीं है बल्कि हमने इसे अपना रोग मान लिया है, सच्चाई से हमेशा दूर भागना कोई रोग नहीं है....

©हेसाम #हेसाम 
#Journey