Nojoto: Largest Storytelling Platform

Best हेसाम Shayari, Status, Quotes, Stories

Find the Best हेसाम Shayari, Status, Quotes from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about

  • 2 Followers
  • 22 Stories
    PopularLatestVideo

Pankaj μtales

मेरा होना तेरा होना चलो एक बात है,
तेरे होने से मेरा होना तो कोई और बात है,
कुछ तो नवाजिशें ख़ुदा ने जरूर की है कि
तेरे होने से ही मेरा होना तक़दीर बन गई...
#हेसाम #pankaj_microtales

हेसाम

आत्महत्या कायर कर ही नहीं सकता
ये हर किसी के बस की बात ही नहीं है
कायर कह देना बहुत सरल है
उसके पीछे की परिस्थिति व मनःस्थिति को भी समझना जरूरी है।।
अगर आत्महत्या कायर कर सकता तो 50% आबादी आत्महत्या कर ही चुकी होती....
लेकिन हम लोगों में वो हिम्मत ही नहीं कि ऐसे कदम उठा सकें, लेकिन कभी न कभी सोचते जरूर है....
यूँहीं नहीं कोई सारे अपनों को छोड़कर इतना बड़ा कदम उठा लेता है....

©हेसाम #हेसाम

#FindingOneself

हेसाम

हमारे आस-पास बेशुमार मोहब्बतें बिखरे हुए हैं
हम बेवजह ही नफरतों में उलझे हुए हैं
जो मिला है उसका दामन तो थामे रखो
क्यों गैरों में उलझे हुए हैं....

©हेसाम #हेसाम
#Love

हेसाम

दोस्ती कोई व्यापार नहीं जो
लेन देन के पैमाने से नापा जा सकता है
ये बेहद खूबसूरत रिश्ता है
जिसे बेहद करीने से अपनाया व निभाया जाता है
बेशक कोई ऊँचा या बड़ा हो सकता है
बेशक कोई बेहद सफल या असफल हो सकता है
लेकिन दोस्ती में व्यक्तिगत उपलब्धियों का कोई मतलब नहीं
हर रिश्ते की पहली शर्त ही यकीन व रिस्पेक्ट होती है
अगर कोई किसी के प्रति फिक्रमंद है तो 
उसे बेसब्र का नाम नहीं दे सकते
सबसे बढ़कर किसी से भी जुड़ना बेहद आसान है
लेकिन उससे जुड़े रहना बेहद मुश्किल
हम सिर्फ एक इंसान से ही नहीं जुड़ते बल्कि
उसकी खुशियों व तकलीफों से भी जुड़ते हैं
आज के समय बहुत जल्द रिश्ते बनते व टूटते हैं
जिसमें अक्सर एकतरफ से ही रिश्ते निभाये जाते हैं
फिर जब वो दूर जाते हैं तो कमी का एहसास होता है
रिश्ते कभी अटूट बनते नहीं है बल्कि
रिश्ते अटूट बनाने पड़ते है
जब रिश्तों में बंधते है तो सिर्फ खूबियां ही गिनते हैं
जब रिश्ता तोड़ते हैं सिर्फ खामियां ही गिनाए जाते है
ना ही खूबियां नई थी और ना ही खामियां नई
बस हमारे सोचने का नज़रिया ही बदलता है
ये सच है कि रिश्ते निभाना बेहद मुश्किल है
कभी कभी अपने अना को नीचे रखना भी पड़ता है
कभी कभी झुक जाना भी पड़ता है
दोस्ती में या किसी भी रिश्ते में झुक जाने से
इंसान छोटा नहीं होता बल्कि इज़्ज़त बढ़ती है
ज्यादातर रिश्ते इसी ज़िद में ही टूट जाते हैं कि
हम तोड़ना पसंद करेंगे लेकिन झुकना नहीं
बिना जरूरत के कोई भी रिश्ते नहीं बनते
लेकिन ये जरूरत क्या है खुद को तय करना है
हमारी प्राथमिकता मैं है या हम है
ये भी जरूर सोचने की जरूरत है
वैसे भी ईमानदार रिश्तों में
खुद से ज्यादा सामने वाले कि फिक्र होती है
असल में यही प्यार भी है चाहे वो दोस्त हो या परिवार..

©हेसाम #हेसाम
#Friendship

हेसाम

वर्तमान समय में जो भी अविभावक थोड़ा भी सक्षम है वो अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में बच्चों को पढ़ने भेजता है। उसके अलावा अगर सक्षम है तो ट्यूशन व कोचिंग भी लगाता है।
अभिभावक चाहता है कि 1 घण्टे की कोचिंग क्लास से बच्चा तेज़ हो जाये और अच्छे नम्बर ला दे, अगर त
नम्बर कम आये या किसी विषय मे फेल हो गए तो जिम्मेदार कोचिंग के टीचर को माना जाता है।
लेकिन जिस स्कूल में बच्चों को 6 घण्टे पढ़ने को भेजा जाता है वहां अभिभावक PTM में मूक बाधिर की तरह सिर्फ बच्चों की शिकायत सुनने जाता है। शिकायत इतने होते हैं कि अभिभावक शर्मिंदा होकर क्लास टीचर से कुछ सवाल नहीं कर पातें।

©हेसाम #हेसाम

#Childhood

हेसाम

इस दुनिया में इंसान अकेला ही आया है और अकेला ही जायेगा, ज़िन्दगी की राहों में कुछ लोग जुड़ते रहेंगे तो कुछ लोग बिछड़ते रहेंगे, मुकम्मल हयात किसी को नसीब नहीं और ना ही किसी की ज़िंदगी मुकर्रर है,
हम इस बात से परेशान है और टूट चुके हैं कि कोई अपना जो बहुत ही करीबी था जिसके बगैर ज़िन्दगी जीने का तसव्वुर भी नहीं कर सकता वो आज हमारे साथ नहीं है, उसी ग़म में अपनी ज़िंदगी को खत्म किये जा रहे हैं। फिर तो हमें ये सोचने की जरूरत है कि जिस ईश्वर पर हमें यकीन है, उसके यकीन पर है ये भी सोचना है कि जो चला गया वो कहीं न कहीं से अपने चाहने वाले को देख रहे होंगे, फिर तो हम उन्हें मरने के बाद भी बेसुकून कर रहे हैं।
इंसान एक सामाजिक प्राणी है, हम समाज व समाज के लोगों से नाना प्रकार से जुड़े रहते हैं। इंसान तो वही है जो दूसरों के लिए अपनी ज़िंदगी को वक्फ कर दे। खुद के लिए जिया तो क्या जीया..... कभी हम परिवार के लिए जीते हैं तो कभी समाज के लिए।
हमें कई दफा लगता है हम बिल्कुल अकेले हैं कोई भी अपना नहीं है, फिर तो हम सच्चाई से भागते हैं, जो चला गया उसको तो वापस ला नहीं सकते लेकिन जो आस-पास हैं उन्हें दुःख देने का हमें कोई अधिकार नहीं है।
अंत में जब जीने की इच्छा खत्म हो जाये और कोई चाहत ना बची हो तो अपनी ज़िंदगी उन लोगों के नाम कर दें जिनको आपकी जरूरत है।
वैसे भी गरीब खुद को कभी अकेला महसूस नहीं करता क्योंकि उन्होंने अपना पूरा जीवन ऐसे ही गुज़ारा है इसलिए किसी के आने व जाने से कुछ खास फ़र्क़ नहीं पड़ता क्योंकि उन्होंने इसे अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया।
ज्यादा अकेलेपन का शिकार अमीर लोग ही हैं जिनके पास हर सुविधा उपलब्ध है ज्यादातर मानसिक रोग व हृदय की बीमारियों से इसी तबके के लोग परेशान रहते हैं। अगर आपके पास जरूरतमंदों को देने को कुछ है तो जरूर दीजिये, कुछ नहीं तो अपना वक़्त जरूर दें। गरीब लोग पैसों के नहीं बल्कि प्यार व इज़्ज़त के भूखे होते हैं।

अकेलापन कोई रोग नहीं है बल्कि हमने इसे अपना रोग मान लिया है, सच्चाई से हमेशा दूर भागना कोई रोग नहीं है....

©हेसाम #हेसाम 
#Journey

हेसाम

हमारा देश प्राचीन समय से ही साझी संस्कृति के साथ जी रहा है, चाहे वो आर्यो का आगमन हो या मुस्लिमों का या अंग्रेजों का.... सभी को खुले दामन के साथ स्वीकार्य किया क्योंकि हमारा देश वासुदेव कुटुम्बकम के सिद्धांतों पर चलता है जिसके अनुसार पूरी धरती ही हमारी है।

जब हमारी साझी संस्कृति है तो हमें सभी संस्कृति का ज्ञान जरूर होना चाहिए, लेकिन समस्या यहीं शुरू होती है, हमें अपने धर्म व संस्कृति का ज्ञान है ना और दूसरों की जानने की कोशिश करते नहीं, सिर्फ जितना सुन रखा है वही हमारे लिए सत्य है....

इस्लाम के अनुसार कुरान में लिखी हर इबारत का मानना हमारा फ़र्ज़ है और हज़रत मोहम्मद साहब की सुन्नतों पर चलना है। लेकिन एक बात साफ-साफ लिखी गयी है कि जो गलत रास्ते पर हैं उन्हें समझा सकते हैं लेकिन कुछ भी किसी पर थोपा नहीं जा सकता। हर किसी के आमाल उन्हीं के संग जाएंगे। हमें किसी को सज़ा देने का अधिकार नहीं बल्कि उस मुल्क के कानून के अनुसार किसी की सज़ा तय होगी। इस्लाम में तो सबसे बड़ी पाबंदी 5 वक़्त की नमाज़ की है, जिसका पालन ज्यादातर लोग नहीं करते लेकिन फिर भी किसी के साथ जबरदस्ती नहीं की जा सकती।

ईरान में हिज़ाब को लेकर विरोध हो रहा है जिसको बहुत से भारतीय कोट कर रहे हैं.... लेकिन मूलभूत बातों को समझ नहीं सके। ईरान में बकायदा हिज़ाब पहनने का कानून है जो औरत हिज़ाब नहीं पहनती उसे सजा दी जाएगी। जिसका मैं पूरी तरह विरोध करता हूँ, क्योंकि जब कुरान में जबरदस्ती की बात नहीं की गई है तो कोई कैसे कानून बनाकर थोपा जा सकता है। इसलिए वहां से अपने देश की तुलना ही बेवकूफी भरा है।
फिर तो अमेरिका व यूरोप में महिलाओं को पूरी तरह आज़ादी है, चाहे जिस तरह के कपड़े पहने या कहीं भी किसी के साथ रहे। क्या हमारा देश इसे स्वीकार कर पायेगा।
हमारे देश में हिज़ाब को लेकर कोई बंदिशें नहीं है....
जिस तरीके से हिज़ाब पहनने को लेकर कानून बना देना गलत है, उसी तरह से जबरदस्ती कोई कानून बनाकर हिज़ाब उतरवा देना उतना ही गलत व शर्मनाक गया, जिसका विरोध हमेशा ही होगा।

©हेसाम #हेसाम

हेसाम

हम प्रतिक्रिया उन्हीं घटनाओं पर दे सकते हैं जिनकी सूचना हमें प्राप्त होती हैं, ये सूचनाएं हमें मीडिया के सभी माध्यमों से प्राप्त होते हैं, चाहे वो प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया। सोशल मीडिया पर तो इन घटनाओं पर प्रतिक्रियाएं होती है।
हमें ये भी पता है कि 90% मीडिया गोदी मीडिया है जो चाटुकारिता में लिप्त हैं, जिनका कार्य सत्ता को खुश करना और उनकी शह पर हिंदू-मुस्लिम करना, जो कि हमेशा ही एक ज्वलंत मुद्दा रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में रेप, छेड़छाड़, हत्या, धर्मांतरण व तलाक की घटनाओं में अत्यधिक मुस्लिम ही शामिल दिखते हैं। लेकिन सरकारी आंकड़े तो कुछ और बताते हैं, लगभग 90% रेप, हत्या, छेड़छाड़ इत्यादि घटनाओं में अपराधी तो गैर मुस्लिम हैं.... 98% तलाक की घटनाओं में गैर मुस्लिम सम्मिलित हैं। फिर भी हर रोज़ अखबारों के मुख्य पेज पर और गोदी मीडिया के प्राइम टाइम पर डिबेट का मुद्दा मुस्लिम ही क्यों होता है?
मैं ये नहीं कहता कि सारे मुस्लिम अच्छे ही हैं, कई अपराधी भी हैं, रेपिस्ट भी हैं और हत्यारे भी... कुछ मदरसे के भी पढ़े होंगे तो कुछ विश्विद्यालय से। लेकिन उनके अपराध को लेकर मदरसों को टारगेट करना, धर्म को टारगेट करना ये कहाँ तक सही है ये सोचनीय विषय है। सत्तापक्ष और गोदी मीडिया तो यही चाहता है कि हिन्दू-मुस्लिम आपस में लड़ता रहे और अल्पसंख्यक समुदाय को एक रेपिस्ट व हत्यारे की नज़रों से देखे।

आखिर में फिर से हम उन्हीं घटनाओं पर प्रतिक्रिया दे सकते हैं जिनकी सूचनाएं हमें प्राप्त होती है, आखिर क्यों किसी घटना में मुस्लिम के सम्मिलित होने पर मुख्य पेज की खबर बनती है और कई दिनों तक इस पर न्यूज़ में डिबेट होती है। ये हमें और आपको सोचने की जरूरत है।

©हेसाम #हेसाम
#Drown

हेसाम

आज एक रोचक विषय पर चर्चा...
हमारे देश में लोगों के लिए महिलाओं से रोचक विषय कोई है ही नहीं, आये दिन पुरुष महिलाओं की फिक्र में बिल्कुल घुले जा रहे हैं, ख़ासकर मुस्लिम महिलाओं की आज़ादी और उनके हक के लिए। मुस्लिम महिलाओं की हालत देखकर हमारी सरकार व कथाकथित गैर मुस्लिमों की तो आँख से आँसू तक रुक नहीं रहे हैं। लेकिन यहाँ मैं सिर्फ मुस्लिम महिलाओं की चर्चा नहीं करूँगा। 

सबसे पहले तो महिलाओं की स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं, जिससे कि कुछ सवाल उभरते हैं....
क्यों शादी के बाद लड़की ही अपना घर का त्याग करे?
क्यों लड़की वाले ही दहेज दें?
क्यों घर के कार्य करने की जिम्मेदारी महिलाओं की ही है?
महिला पुरुष बराबर क्यों नहीं? 

ऐसे कुछ सवाल और हो सकते हैं, अगर इन सबका जवाब धर्म से हासिल करने की कोशिश की तो शून्यता हासिल होगी। हम थोड़ा ध्यानमग्न होंगे तो जवाब खुद ब खुद मिल जाएगा। सर्वप्रथम ईश्वर ने महिला व पुरुष की संरचना अलग-अलग बनाई है, जिसकी वजह से महिला ही माँ बन सकती है इसलिए बच्चे के पालन पोषण की जिम्मेदारी मां पर अधिक होती है। शारीरिक रूप से पुरुष तो मानसिक रूप से महिला शक्तिशाली होती है। लेकिन लोग तो बल को ज्यादा वरीयता दी जाती है। इसी आधार पर समाज की गतिशीलता के लिए एक संरचना बना दी गयी। जो कि गलत भी नहीं है।
अब ये देखिये कि समाज महिलाओं को कमतर क्यों समझता है। असली समस्या यह है कि पुरुष द्वारा किये गए कार्यों का मेहनताना मिलता है और घर व समाज में इज़्ज़त, वहीं महिला पुरुष से अधिक घरों में मेहनत करती है लेकिन न तो उसे कोई मेहनताना मिलती है और ना ही घर व समाज में उतनी इज़्ज़त, यहाँ तक GDP में भी महिलाओं के इन कार्यों की कोई हिस्सेदारी नहीं होती। असली समस्या बस यहीं है। 
मैं तो उन महिलाओं को सलाम करता हूँ जो घर भी सम्भाल रही हैं और बाहर कार्य भी कर रही हैं, इससे पता चलता है कि वो मानसिक रूप से कितनी मजबूत है और हमारा शरीर भी हमारे मस्तिष्क का गुलाम है। आज जिस फील्ड में भी महिलाओं को मौका मिला वहां वो शिखर पर है इसलिए उनकी मजबूती व क्षमता का अंदाजा लगाना किसी के बस की बात नहीं।

फिर से अपने उन्हीं सवालों पर आते हैं क्योंकि घर की अर्थव्यवस्था को चलाने की जिम्मेदारी पुरुषों पर थी, इसलिए लड़की को विदा होकर पुरुष के घर ही आना था। लेकिन यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि महिलाओं को सबसे ज्यादा समस्या का सामना शादी के बाद करना पड़ता है। पहले के समय शादी के बाद पति-पत्नी अलग रहते थे फिर जॉइंट फैमिली का रिवाज आ गया। जिससे घर की पूरी जिम्मेदारी है बहु पर आ गयी। एक बात ध्यान देने योग्य है कि बहु के लिए ससुराल के लोगों की खिदमत करना फ़र्ज़ नहीं सिवाय पति को छोड़कर, अगर वो ख़िदमत करती है तो वो उसका एहसान है वहीं माँ-बाप की खिदमत करना बेटे पर फ़र्ज़ है, अगर वो इससे मुँह फेरता है तो उस पर बहुत बड़ी लानत है।
हमारे धर्म व कानून के अनुसार पिता की प्रॉपर्टी पर बेटी का भी उतना ही अधिकार है जितना बेटे का, अगर लड़की ना लेना चाहे तो कोई बात नहीं। 95% हालातों में तो न लड़की को दिया जाता है और ना ही लड़की की इसमें दिलचस्पी होती है। इसलिए लड़की को उपहार स्वरूप गृहस्थ जीवन का सब कुछ दे दिया जाता है, कहीं-कहीं हैसियत के अनुसार पैसे व जमीन भी दी जाती है। ये दहेज नहीं है बल्कि लड़की का हक़ है।
दहेज उस वक़्त होगा जब लड़के के पक्ष वाले कुछ भी लड़की पक्ष से डिमांड करते हैं चाहे वो एक चम्मच भी हो वो दहेज है। दहेज को लेकर ससुराल में सबसे ज्यादा महिलाएं प्रताड़ित होती हैं। 
हम सब अपने-अपने घरों की सोचें तो
किन घरों में दहेज नहीं लिया गया और किन घरों में महिलाएं प्रताणित नहीं की गईं?

एक बात बड़ी ज़ोर शोर से प्रचारित की जाती है कि हिन्दू विवाह में शादियां सात जन्मों का बंधन है और मुस्लिम विवाह में शादी सिर्फ एक कॉन्ट्रैक्ट, इसी वजह से यह आक्षेप लगता है कि मुसलमान तो कभी भी तीन तलाक देकर विवाह तोड़ सकते हैं। जानकारी के लिए बता दूं कि कोर्ट मैरिज में भी गवाहों के साइन के साथ कॉन्ट्रैक्ट ही होता है। 
इसी सोच ने तो महिलाओं को और ज्यादा बंधक बना दिया। उनके दिमाग मे यह भर दिया जाता है कि तुम्हारा विवाह सात जन्मों का बंधन है, अब ससुराल ही तुम्हारा असली घर है, मायका पराया हो चुका है, बेटी की अर्थी ही ससुराल से निकलती है। इस वजह से ज्यादातर महिलाएं प्रताड़ना सहती रहती हैं। मुस्लिम घरों में भी इतना नहीं तो ऐसा ही कुछ है क्योंकि हमारी साझी संस्कृति है। एक ही समाज मे रहने की वजह से एक दूसरी की संस्कृति का मेल जोल होना वाजिब है।

आप कहते हो कि हिन्दू महिलाएं स्वतंत्र हैं और मुस्लिम महिलाएं आज़ाद नहीं है, बस यहीं पर आप हमेशा गलत होते हो। आप इसे इस तरह देखिये कि महिलाओं के पीछे रहने की असल समस्या क्या है। दरअसल, हमारी हर समस्या का इलाज़ शिक्षा है, महिलाएं हमेशा ही समस्या में रही हैं और आज भी हैं, किसी धर्म मे ज्यादा तो किसी धर्म में कम, इसकी वजह रूढ़िवादी सोच भी है कुछ हद तक, इस सोच में बदलाव कोई कानून या समाज नहीं कर सकती बल्कि शिक्षा कर सकती है। हिन्दू महिलाओं की शिक्षा व हिन्दू महिलाओं की शिक्षा में लगभग 20% का अंतर है जो कि बहुत ज्यादा है। 
फिर आप कहोगे कि सभी को बराबरी का शिक्षा का अधिकार है फिर वो क्यों पढ़ने से वंचित है, मौलवी मौलाना पढ़ने से रोकते हैं और फतवा देते हैं। बस यही गलत सोच है लोगों की।
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पढ़िए, मुसलमानों व महिलाओं की स्थिति क्या है, उनकी आर्थिक हालत कितनी दयनीय है। आपने 22% आरक्षण दलित वर्ग को तो दे दिया जो कि हिन्दू धर्म मे ही आते है, लेकिन अल्पसंख्यकों या मुसलमान को बड़ी चालाकी से पिछड़ा वर्ग में शामिल कर दिया है, जिसका फायदा कभी मुस्लिमों तक पहुंचा ही नहीं।
अगर किसी के मन में मुस्लिम महिलाओं के लिए पीड़ा है तो उनकी शिक्षा में मदद करिये, उनकी शादियों में मदद करें, उनके आर्थिक हालात को सुधारने का प्रयास करें।
शिक्षा ही एक मात्र जरिया है जिससे रूढ़िवादी मानसिकता व पिछड़ेपन को दूर कर सकती है।

©हेसाम #हेसाम

हेसाम

#कलाकार

हमारे लिए बचपन से ही कलाकर एक अदभुत प्राणी रहा है, चाहे वो लेखक, रचनाकार, टीवी व सिनेमा के कलाकार, पेंटर, स्केच बनाने वाले,इत्यादि।
हमने अदभुत साहित्यों को भी पढ़ा है खासतौर आज़ादी से पूर्व लिखी गयी।
ये भी पढ़ा कि एक कलाकार समाज का आईना होता है और समाज को सही दिशा दिखाने की जिम्मेदारी भी उनपर होती है। वह जुल्म व अन्याय के खिलाफ अपनी कला के जरिये प्रदर्शित भी करता है। वो कभी सत्तापक्ष के साये में खड़े होकर अपने आप को सुरक्षित न करता और ना ही अपनी धार को कुंद करता बल्कि वो सत्तापक्ष के विरोध में खड़े होकर मजलूमों की आवाज़ अपनी कला के जरिये उठाता है।
कुल मिलाकर एक कलाकार को तय करना है कि वो सत्तापक्ष की मिलाई खाकर अपने भविष्य को संरक्षित करना है या गरीब, बेसहारा, मजलूमों की आवाज़ बनकर सत्तापक्ष के विरोध में खड़े होकर अपनी कला को एक नया आयाम देना है।
ये भी सोचिए कि एक कलाकार बनने के लिए आपने कितनी जतन व मेहनत की, आपने अपने नैसर्गिक गुण को कहां से कहाँ तक पहुंचा दिया लेकिन सफलता के शिखर तक पहुंचने के बाद क्यों अपने अस्तित्व का सौदा कर दिया। वो ज़िंदा कैसे हैं यही समझ से परे है....
अपनी कला को निखारने व माजने का प्रयास करना वरना खरीदार तो चारों तरफ है कला आपकी होगी और आपके नाम से कोई और सुर्खियां व सफलता बटोर रहा होगा।
आपका हुनर हर एक वंचित व शोषित वर्ग की आवाज़ होनी चाहिए, तभी आप एक कलाकार के रूप में सफल हैं और उसी रूप में याद भी किये जायेंगे।

©हेसाम #हेसाम
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile